-
सजल नयन के कोर…….. करो न आहत हृदय हमारा,कदम बढ़ाया अभी-अभी। वही भरोसा बना रहेगा, कलम उठाया अभी-अभी । हुए नहीं जो खुद ही अपने, रिश्ते नाते नये-नये उठीं सदाएं जगत हितों की,जिसे जगाया अभी-अभी । भले शिखर तक पहुँच गए हम,तृषा हवस की डुबा रही, क्या खो चुके हम ये न सोचा, विवश बनाया अभी-अभी । बढ़ा हौसले वही गिराते,परख सके हैं कुटिल कहाँ, रही सतत दुविधा लाचारी,विकल अनाया अभी-अभी । दाँव सियासी खेलें देखा, चौपड़ बाजी लगी यहाँ, उठो राष्ट्र के लिए विवेकी, हृदय लजाया अभी-अभी। उठा शीश हो विशेष अपना, चुन सके हम उचित राहें, “सजल”नयन के कोर बताते,कि क्या गँवाया अभी-अभी। भरे सुकर्मों से ये आँगन,लगे…
-
“उमड़ पड़े हिय ज्वार”
गीत जल से है जलनिधि की गरिमा,हिम से है हिमवान । बूंद-बूंद से सागर जिसके, अगणित हैं उपमान । यत्न-रत्न से गर्भित-गर्वित, उमड़ पड़े हिय ज्वार । चरण पखारे हिम शृंग के, जोड़े अनुपम तार । लहरों पर नित चंद्र उतारे,शोभित उर्मिल प्राण । बूंद-बूंद से सागर जिसके,अगणित हैं उपमान । उठती गिरती फेनिल धारा, वक्षस्थल को चीर । चतुर सयाने यात्रा करते, गहरे खींच लकीर । स्वागत में यह विशाल सागर,भाव भरे उन्वान । बूंद-बूंद से सागर जिसके,अगणित हैं उपमान । विकल हुए संवेदित मन को । जहांँ मिलाती चाह । नदियों का संगम ही सागर, सरितराज-उत्साह । लिखा करेंगी सदियों तक ये,प्रेम सरस सहगान । बूंद-बूंद से सागर…