-
लिखे लेखनी जंग
गीत ——— धुंंध-धुंध औ धुंध,प्रलय का पहने बाना । धर्म-कर्म सुविचार,कृत्रिम जाना-पहचाना । लख चौरासी योनि शीर्ष मानव तनधारी । भरे विकट उन्माद, करें दुःखी व्यभिचारी । भोगी तन-मन तंत्र, दीन नैतिकता चादर, अँखियाँ जाती भीग तड़प का दे नजराना । तिल-तिल घटता प्राण, जगा करती कुंठाएं बदली नहीं अनाम, दशा-किस्मत-रेखायें सिहरे तरुवर पात,निशा अलाव बन जागे, घुल जाता जब धैर्य, बुनेगा गीत सयाना । लिखे लेखनी जंग हुए क्यों तंग झरोखे । जीवन के सब रंग दर्द जी रहे अनोखे । टूट चुके हिय बांध, पीड़ा न हृदय समाए, छिड़ा जंग संगीन, चुने ये विकल तराना । ———– डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी
-
“सजल नयन के कोर”
सजल नयन के कोर…….. करो न आहत हृदय हमारा, कदम बढ़ाया अभी-अभी । वही भरोसा बना रहेगा, कलम उठाया अभी-अभी ।। हुए नहीं जो खुद ही अपने, रिश्ते नाते नये-नये । उठीं सदाएं जगत हितों की, हृदय जगाया अभी-अभी ।। भले शिखर तक पहुँच गए हम, तृषा हवस की डुबा रही । क्या खो चुके हम ये न सोचा, विवश बनाया अभी-अभी ।। बढ़ा हौसले वही गिराते, परख सके हैं कुटिल कहाँ । रही सतत दुविधा लाचारी, हृदय लजाया अभी-अभी ।। दाँव सियासी खेलें देखा, चौपड़ बाजी लगी यहाँ । सजल”नयन के कोर बताते, कि क्या गँवाया अभी-अभी।। उठा शीश है सदा जगत में, चुनी सदा ही उचित राहें ।…
-
“उमड़ पड़े हिय ज्वार”
गीत जल से है जलनिधि की गरिमा,हिम से है हिमवान । बूंद-बूंद से सागर जिसके, अगणित हैं उपमान । यत्न-रत्न से गर्भित-गर्वित, उमड़ पड़े हिय ज्वार । चरण पखारे हिम शृंग के, जोड़े अनुपम तार । लहरों पर नित चंद्र उतारे,शोभित उर्मिल प्राण । बूंद-बूंद से सागर जिसके,अगणित हैं उपमान । उठती गिरती फेनिल धारा, वक्षस्थल को चीर । चतुर सयाने यात्रा करते, गहरे खींच लकीर । स्वागत में यह विशाल सागर,भाव भरे उन्वान । बूंद-बूंद से सागर जिसके,अगणित हैं उपमान । विकल हुए संवेदित मन को । जहांँ मिलाती चाह । नदियों का संगम ही सागर, सरितराज-उत्साह । लिखा करेंगी सदियों तक ये,प्रेम सरस सहगान । बूंद-बूंद से सागर…