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“नहीं साँच को आंच बावरे”
_गीत नीति रीति का करें समर्थन,मिट जाये टकराव । आपस की कटुता को मेटे, प्रेम समर्पण भाव । विश्व मंच से पाप-पुण्य के, मुद्दे उठे हजार, दिया समर्थन दोषी को यदि,दोषी स्वयं करार। अपनी क्षमता स्वयं आँकिए, बिना शस्त्र भगवान, भरी अदालत सिद्ध न होता,गवाह बिना दबाव। विनाश काले विपरीत बुद्धि, स्वयं डुबाती नाव। ———————- प्रेम समर्पण भाव । पीर न कोई झूठी होती,पाप करे क्यों राज, अपराधों के बोझ तले जब,दबी मनुजता आज। भगवन तेरी दुनिया में ये,जन्में कैसे ? लोग, कुटिल निरंकुश की अपघातें,उनके बीच चुनाव। नर-नारी के सपने रिश्ते; बनते रिसते घाव । ———————- प्रेम समर्पण भाव । विश्व-युद्ध की आशंका है, सुप्त जगाएं बोध। राष्ट्र-हितों में…
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“अपनी डफली अपना राग”
गीत शून्य चेतना अंध चाह में, दौड़ मचाती भागमभाग । सूझ-बूझ से करें न साझा,अपनी डफली अपना राग । रहे पृथक जो अपने मद में, हठधर्मी जिसका व्यवसाय। नीति धर्म परिवारी जीवन अपनी दुनिया कायम समवाय । मतभेदों का मिथक भरोसा,कलुष भरा कब छूटे दाग । सूझ-बूझ से करें न साझा,अपनी डफली अपना राग । रात घनेरी सुप्त पाँखुरी, कौन सजाये दीपक द्वार । निशा बिछाए बूँद शबनमी, करे धरा जिससे अभिसार । दर्द बनी जो वादी अपनी , खेल हुआ जो खूनी फाग । सूझ-बूझ से करें न साझा,अपनी डफली अपना राग । वारिद बूँदों से भर देता, बहे उफन नदिया उन्माद। दिखा दिया अवसाद मर मिटने पर सभी…