
“भूले बिसरे नगमें “
#गीत
गीत गुनें मन सप्त सुरों में, मुझमें नित विश्वास जगाए ।
मंत्र मुग्ध सी करे यकीनन, अलख साधना प्यास जगाए ।
तरल तरंगित अंतस्तल की,
सहज वेदना लगे सो गई ।
दूर गगन तक घिरी साँझ की,
अमा न जाने कहाँ खो गई ।
शून्य हुई जब जगत चेतना,कोई आकर पास जगाए ।
मंत्र मुग्ध सी करे यकीनन,अलख साधना प्यास जगाए ।
भाग्य भरोसे चला सारथी,
जीवन रथ की कहे कहानी ।
भूले बिसरे नगमें छेड़े ,
बीते पल की वहीं पुरानी ।
छलक उठे जो नयन कोर से,सरल तरल अहसास जगाए।
मंत्र मुग्ध सी करे यकीनन,अलख साधना प्यास जगाए ।
कर्म किए जा सार्थक मानव,
खोज रहा परिणाम व्यर्थ क्यों ।
रंग-मंच यह दुनिया भ्रामक,
कथ्य-तथ्य से विकल अर्थ क्यों ।
प्रेम विटप पर “लता” बढ़े ज्यों,नियति नटी अरदास जगाए।
मंत्र मुग्ध सी करे यकीनन,अलख साधना प्यास जगाए ।
——————-@डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी
