
सारथी जगदीश्वर
भाव भरे सिंदूरी आकर,हृदय हुआ भावुक उद्गम।
हुई साधना अभिमंत्रित ये.धीर धरो कहता संयम।
शैशव से यौवन मनभावन, भावी भी होगा सुंदर,
प्रतिपल अर्पित आराधन का, पुलकित होता हिय-अंतर।
अलिकुल वश में मदन बाण के,खोल रहीं पुट को कलियाँ,
पीत वसन मधुमासी अंचल, महके वन कुंजन गलियाँ ।
लोकलुभावन बातें अनगिन,सुर साधे जैसे पंचम ।
हुई साधना अभिमंत्रित ये.धीर धरो कहता संयम ।
शर-संधान लिए सनई के, फाग उड़े हौले-हौले,
सरस सुनाए मधुकर आकर, कुंज-कुंज मधुरस घोले ।
नाद-ताल लय साज सधें ज्यों,प्राण भरे स्वर उपवासी,
हेम रश्मि से आलोकित रवि,अँखियाँ दर्शन की प्यासी ।
दीप स्नेह का जले सदा ही,विरह-मिलन फिर हो संगम ।
हुई साधना अभिमंत्रित ये.धीर धरो कहता संयम ।
नियति-नटी अधिकृत कड़ियांँ,अनदेखी करते भोगी,
सरल बाँधना #संकल्पों में, पूर्ण करेंगे नित योगी ।
देता नव विस्तार जगत को,जहाँ सारथी जगदीश्वर,
राग-द्वेष हों गति अवरोधक,सत्यव्रती का पथ ईश्वर ।
सच्ची हों रचनात्मक कड़ियां,भर देतीं जीवन सरगम ।
हुई साधना अभिमंत्रित ये.धीर धरो कहता संयम ।
————————————-डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

