- 			“भूले बिसरे नगमें “#गीत गीत गुनें मन सप्त सुरों में, मुझमें नित विश्वास जगाए । मंत्र मुग्ध सी करे यकीनन, अलख साधना प्यास जगाए । तरल तरंगित अंतस्तल की, सहज वेदना लगे सो गई । दूर गगन तक घिरी साँझ की, अमा न जाने कहाँ खो गई । शून्य हुई जब जगत चेतना,कोई आकर पास जगाए । मंत्र मुग्ध सी करे यकीनन,अलख साधना प्यास जगाए । भाग्य भरोसे चला सारथी, जीवन रथ की कहे कहानी । भूले बिसरे नगमें छेड़े , बीते पल की वहीं पुरानी । छलक उठे जो नयन कोर से,सरल तरल अहसास जगाए। मंत्र मुग्ध सी करे यकीनन,अलख साधना प्यास जगाए । कर्म किए जा सार्थक मानव, खोज रहा परिणाम… 
- 			“शुभ-शुभ बोलो माँ कहती”बाल-गीत भोला बचपन समझ न पाया,शुभ-शुभ बोलो मांँ कहती । देख गगन से टूटा तारा, अनहोनी से जो डरती । बिजली चमके ज्यों घन गरजे, झम-झम ओले बरसे, गहन अंँधेरे से डर जाए, बंद करे खिड़की डर से । सन-सन चलती तेज हवाएं,शुभ-शुभ बोलो मांँ कहती । देख गगन से टूटा तारा,, अनहोनी से जो डरती । कभी न जाना सूनी राहें, किस्से दादी नानी से । घड़ी अशुभ की कभी न आए, अपनी ही नादानी से । चढ़े न हम पर काला जादू,शुभ-शुभ बोलो मांँ कहती । देख गगन से टूटा तारा, अनहोनी से जो डरती । काला धागा बाँध कलाई, सभी बलाएं जो हर ले। प्रेम भरा संसार… 
- 			सारथी जगदीश्वरभाव भरे सिंदूरी आकर,हृदय हुआ भावुक उद्गम। हुई साधना अभिमंत्रित ये.धीर धरो कहता संयम। शैशव से यौवन मनभावन, भावी भी होगा सुंदर, प्रतिपल अर्पित आराधन का, पुलकित होता हिय-अंतर। अलिकुल वश में मदन बाण के,खोल रहीं पुट को कलियाँ, पीत वसन मधुमासी अंचल, महके वन कुंजन गलियाँ । लोकलुभावन बातें अनगिन,सुर साधे जैसे पंचम । हुई साधना अभिमंत्रित ये.धीर धरो कहता संयम । शर-संधान लिए सनई के, फाग उड़े हौले-हौले, सरस सुनाए मधुकर आकर, कुंज-कुंज मधुरस घोले । नाद-ताल लय साज सधें ज्यों,प्राण भरे स्वर उपवासी, हेम रश्मि से आलोकित रवि,अँखियाँ दर्शन की प्यासी । दीप स्नेह का जले सदा ही,विरह-मिलन फिर हो संगम । हुई साधना अभिमंत्रित ये.धीर धरो… 
- 			“राह निहारे किसकी”संवेदना हमारी…….. बोझिल पलकें मेरी बहनों,सूने नयन तुम्हारे । शपथ लिया सिंदूरी हमने,सरहद हमें पुकारे । तुमसे मांँग सिंदूरी प्रीतम, लेकर सातो फेरे । अनजाने पथ लगे सुहाने, स्वप्न लिए बहुतेरे । रची हाथ मेंहदी न छूटी,नूपुर नयन निहारे । बोझिल पलकें मेरी बहनों,सूने नयन तुम्हारे । नहीं मानती धड़कन उलझे, राह निहारे किसकी । सब झूठे दिखते दर्पण में, आंँचल रोपे हिचकी । उन्हें देख अब तस्वीरों में,देखें नभ के तारे । बोझिल पलकें मेरी बहनों,सूने नयन तुम्हारे । दीन धरम सब भूल चुके जो, हया न जिनको आती । उठे हाथ कृत संकल्पों के, नहीं बचेंगे घाती । देखें चितवन से कजरारी,’लता’सिसकती हारे । बोझिल पलकें मेरी बहनों,सूने… 
- 			“प्रेम पथिक की ठाँव”निशा दिवस की दिव्य रश्मियाँ,ऋतुओं का श्रृंगार । रामनाम का पावन दर्शन । संग सजा संसार । हँसता गाता बचपन-यौवन, नित अपनों का साथ । नेक राह पर चलना सुंदर, संगति देते हाथ । तृषाजगत हित सदा लुभाए,भूख न हो व्यापार । रामनाम का पावन दर्शन, संग सजा संसार । सोच रही हूँ रातें कितनी, बीती सुबहो शाम । साधक तन-मन महकी बगिया, संचित जो निष्काम । छाया पेड़ खजूर न देता, अहं खड़ा लाचार । रामनाम का पावन दर्शन, संग सजा संसार । क्या खोया क्या पाया हमने, प्रेम पथिक की ठाँव । डूब रही कागज की नौका, सह न सकी जो दाँव । उम्र हो गई तकते साथी,… 
 
				


 
				

 
				




 
				

