हिन्दी हिन्दुस्तान की ।
हिन्दी हिन्दुस्तान की ।
#गीत
कण-कण में भर दे नव स्पंदन,हिन्दी हिन्दुस्तान की ।
धूप-दीप नैवेद्य धूम सम, महिमा गुरु के ज्ञान की ।
ज्ञान मान से काटे जड़ता,
मिटती है कटु वेदना ।
ज्ञान सुमन प्रतिभा का संचय,
सजग सृष्टि संचेतना ।
वरद हस्त हों! ज्ञान दायिनी,बरसे नित वरदान की ।
कण-कण में भर दे नव स्पंदन,हिन्दी हिन्दुस्तान की ।
मलय वात सी चहुँ दिक डोले,
सहज गामिनी हिन्दी भाषा ।
सुत अभिशापित होंगे जिनकी,
बनी नहीं मन की अभिलाषा ।
दासत्व सुहाता उन्हें सदा ही,भाषा पर उपधान की ।
कण-कण में भर दे नव स्पंदन,हिन्दी हिन्दुस्तान की ।
अचल गिरा ये बोध हमें हो,
कंठ सुधा ये हिन्दी अपनी ।
गौरव बनकर सदा लुभाये,
सजी माथ ये बिंदी अपनी ।
“लता” विशाखा*लहर लहर कर,बनी मानिनी गान की ।
कण-कण में भर दे नव स्पंदन,हिन्दी हिन्दुस्तान की ।
—————डॉ0प्रेमलता त्रिपाठी