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“कला खिले मधुराकर की”
#गीत सजा रही हूँ स्वप्न चंद्र पर, राग रागिनी अंतर की । अमा लिखे क्यों श्वेतांबर पर,कला खिले मधुराकर की, उड़ जाते उस छोर सुहाने, सपने सच करने दो बस, संग सखा बन घूमे जैसे,यह संगिनि मौन सफर की । सरस चाँदनी भरती धरती,ज्यों बदरी बीच निहारे । आखर ढाई उलट पलटकर,पृष्ठ लिखे बिखरे तारे । टिम-टिम जुगनू दादुर झींगुर,कटी निशा नभ प्रातर की, अमा लिखे क्यों श्वेतांबर पर,कला खिले मधुराकर की । गाए कैसे बनजारा मन, नहीं सुलाए जब लोरी । श्वांस भरे तन केवल जीवन,भव बंधन की यह डोरी । साँझ सकारे नयन हमारे, अभिनव सजते आखर की, अमा लिखे क्यों श्वेतांबर पर,कला खिले मधुराकर की। उड़ जाते…
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“उन्नति करती राष्ट्र चेतना”
#गीत सत्य-साधना-संकल्पों से, सदा रहें अनुरक्त । चिंतन-मंथन जीवन सरगम,सरस दिवा हो नक्त । उन्नति करती राष्ट्र चेतना,शिक्षित रहे समाज । ऊँच-नीच हो भेदभाव के,बने न कोई व्याज। राग-द्वेष के अगनित कारक,जहाँ करें अभिशप्त, चिंतन-मंथन जीवन सरगम,सरस दिवा हो नक्त । ******* राष्ट्र हितों में जीवन अर्पित, होगा तन उद्दाम । नगर-गाँव हो बहुविध उन्नत,सबको मिले मुकाम । मर्यादा शुचिता की माला, पुष्टि भाव संपृक्त, चिंतन-मंथन जीवन सरगम,सरस दिवा हो नक्त । ******** कुछ कारक संकेत मानिए, दुर्बल करते मान । साक्षी है इतिहास सदा जो,छला गया अनजान । महके समिधा जप-तप की क्यों,मन होता संतप्त, चिंतन-मंथन जीवन सरगम,सरस दिवा हो नक्त । *********************डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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“देख सजन लालित्य”
#गीत हरित कहानी होगी पूरी, तुम से हे! ऋतुराज। विहँस पड़ी ये नव्य मालिका,सुन्दर ये आगाज़। महक उठी रजनी गंधा से,निशा करे अभिसार। धरा सजाए गुलमोहर से, लहके पथ अंगार । फाग बसंती जामा पहिरे, पटुका बाँथे भाल । फूलन से बगिया सँवरी नित,हरित पीत तन लाल । माँग भरो सिंदूरी आकर,तुम मेरे सरताज । हरित कहानी होगी पूरी तुम से हे!ऋतुराज। मंत्र पूत हो नित्य साधना, प्रियवर तुम आदित्य । ओढ़ चुनरिया वसुधा रोपे, देख सजन लालित्य। मोह रहा मन दिग दिगंत तक,तुम जो आये कंत । वर्ष-वर्ष तक वैभव तेरा , सदा रहे जीवंत । फूल-फूल औ पात-पात से,उपवन करते नाज, हरित कहानी होगी पूरी तुम से हे!…