“हँसना जग से जाना”
#गीत —————
बंधन प्यारा नेह देह का,बुनकर ताना बाना ।
रोते रोते आये थे हम, हँसना जग से जाना ।
लुक छुप करते बचपन बीता,आयी जब तरुणाई ।
मुड़ कर तेरा दीद करूँ क्या, हँसती है अरुणाई ।
सब रस बाहें फैलाये वह, सुंदर लगा सबेरा,
ऊँच नीच या भेदभाव हो, कोई नहीं बहाना ।
रोते रोते आये थे हम, हँसना जग से जाना ।
समझ न आये किस पथ जाना,फूल कहीं थे काँटे ।
सुख दुख की छाया में बीते, मिलकर हमने बाँटे ।
अपने और पराये की नित, दुनिया करे बखेड़ा,
जगत साधना सत्कर्मों की,उसको सफल निभाना ।
रोते रोते आये थे हम, हँसना जग से जाना ।
धूप छाँव घन बरखा सावन,कोकिल की अमराई।
मधुशाला जीवन की महकी, मद में थी अँगनाई।
कर्म भरोसे किया उजाला, मन से हटा अंधेरा,
“लता” मिला जो लिखा भाग्य में,समझे जगत सयाना ।
रोते रोते आये थे हम, हँसना जग से जाना ।
——– डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी ——–