“महके राह कपूरी”
#गीत
अब के बिछुडे़ कहाँ मिलेंगे,राही कर ले यात्रा पूरी ।
पथ पर साथी चलते-चलते,मिटा सकेंगे हम ये दूरी ।
भूले-भटके सुध-बुध खोकर,
साँझ परे जो घर को आए ।
रंग बदलकर फागुन आया,
लगी लगन जो बुझा न पाए ।
जलते पथ के दीवट तुमको,साँझ बुलाए नित सिंदूरी ।
अब के बिछुडे़ कहाँ मिलेंगे,राही कर ले यात्रा पूरी ।
रात-रागिनी-रजत-रेणुका,
नभ को भाए चाँद सलोना।
चला अकेला धवल कांति ये,
कोई लगाए इसे ढिटोना ।
पथिक न कोई साथ चले जो,बनकर महके राह कपूरी,
अब के बिछुडे़ कहाँ मिलेंगे,राही कर ले यात्रा पूरी ।
इक परछाईं चले साथ जो,
अपने पन में सिमटे पलछिन।
डूब रहा ज्यों मन वैरागी,
खंजरीट के सात-सुरों बिन ।
ताल मिला दे सरगम वारे, नशा जगा दे घन अंगूरी ।
अब के बिछुडे़ कहाँ मिलेंगे,राही कर ले यात्रा पूरी ।
————————डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी
खंजरीट
(सं.) [सं-पु.] 1. खंजन पक्षी के लिए प्रयुक्त शब्द 2. संगीत में एक ताल।