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ध्रुवक साधना
#गीत (छंद सरसी) धवल चँद्रिका शरद चंद्र की,अनुपम रूप मयंक। अंबर का शृंगार तुम्ही से, श्वेत स्वच्छ अकलंक । रंग भरे सपनों की कलशी, सजी तारिका नेक । ध्रुवक¹ साधना छंद सृजन के , भाव भरे अतिरेक । दर्शन दुर्लभ तीज-चौथ के,साधक उत्कट बंक² । अंबर का शृंगार तुम्ही से,श्वेत स्वच्छ अकलंक । झरे बूँद रिमझिम तुषार के, सुखदा कांति विशेष, अमिय कमंडल लेकर आये, तृषा मिटी अनिमेष । शुभ्र वेश उन्मेष सजाये, चातक लगे सशंक । अंबर का शृंगार तुम्ही से,श्वेत स्वच्छ अकलंक । साज सरस से छेड़ रागिनी, रीझे शारद विज्ञ, जगा रही ज्यों अलख ज्योत्सना, अनुरागी अनभिज्ञ । वश में अपने कर लेती जो, राजा हो या…
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“प्यारी लोरी गीत बनी”
#गीत गूँगे को मीठा मिल जाये,स्वाद नहीं कहने में आये । आज बहुत ही खुश हूँ प्रियवर,तुम मेरे सपने में आये। हीरा माणिक अंक सजाकर, तुम को पाया आँचल में । बिछुड़े थे हम कहाँ तुम्हारे, बहकर गाते काजल में । आँख ढरे सुरमा सुषमा से,बूँद जहाँ गलने में आये। गूँगे को मीठा मिल जाये,स्वाद नहीं कहने में आये । प्यारी लोरी गीत बनी जब, माँ की गोदी गुलजार हुई । दो नयनों की दूरी जैसे – अब कोरों के अनुसार हुई । इतनी यादें कहाँ समेटूँ, प्रात सहज जगने में आये। गूँगे को मीठा मिल जाये,स्वाद नहीं कहने में आये । जोड़ दिया अपना हमसाया, नेह सजल नित अरमानों…
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“कहाँ संँजोये जोगन”
#गीत अरी बावरी पथ में बैठी,अपलक किसे निहारे । पिया बटोही रमता जोगी, ठहरे किसके द्वारे । रीत रही मन की गागर ये,मधुशाला जीवन की, खोज रहा हिय सार जगत में,बीते अपने पन की उन बिन ये शृंगार सखी जी,सूना सावन-भादौ, विरह प्रीति अनजान पथिक से,कोर भिगोते खारे । पिया बटोही रमता जोगी, ठहरे किसके द्वारे । घन घननाद करे उन्मादी,नदिया बहती धारा । छलतीं हिय में कोरी बतियाँ,दिन में देखूँ तारा । सखी लुभाये चंद्र चकोरी,किस्से इनके अनगिन, मिलन विरह की पीर निगोड़ी,अपनों से ही हारे। पिया बटोही रमता जोगी, ठहरे किसके द्वारे । लता प्रेम की सींच रहे ये,धीर नयन के अंजन। दाँव पेंच सब लाज धरम को,कहाँ…
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“धर्म नीति भावों की सरिता”
#गीत जल में थल में धरा गगन में,तुम बिन कौन सँवारे । मंत्र मुदित मनभावन मंगल, सबको ईश उबारे । मरकत मणिमय निहित सरोवर, किरण प्रभा छवि गुंफित । सुखद सलोनी आभा अविरल, पात-पात पर टंकित। निखर उठा है पंकिल तन ये,मुकुलित नैन निहारे । मंत्र मुदित मनभावन मंगल, सबको ईश उबारे । मीन उलझती रही निरापद, शैवालों में खेले । सरसिज काया मदमाती यों, अगणित बाधा झेले। सतह-सतह पर कुटिल मछेरे,बगुले हिय के कारे । मंत्र मुदित मनभावन मंगल, सबको ईश उबारे । लता सीख देती ये कणिका, मन को करें न दूषित। धर्म नीति भावों की सरिता, निश्चित होगी भूषित । नया सबेरा फिर-फिर आये, कर्मठ मंत्र उचारे…
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‘राज इसका कहें आज किससे’
#गीत प्रीति सरगम लुभाती बहुत है। मृत्यु अंतस दुखाती बहुत है। राज इसका कहें आज किससे, बन ये’ परिहास जाती बहुत है। ——— छद्म दुनिया करे तो जले मन । खोट मन की छुपाता रहे तन । धर्म के काज में भी कुटिलता, नित तृष्णा के छाये रहे घन । घूमती स्वार्थ घाती बहुत है । बन ये’ परिहास जाती बहुत है। ——— प्राण पिंजर बँधा जानते जो। हाथ मलते गया मानते जो । शाम ढलती कहें उम्र की हम, चादरें यों सदा तानते जो । साँझ ऐसी रुलाती बहुत है । बन ये’ परिहास जाती बहुत है। ——— है न सावन झड़ी फागुनी ये। रंग बरसा गयी जामुनी ये।…
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साक्षी है इतिहास
“गांधी व शास्त्री जयंती पर समर्पित ————– विकट साधना संकल्पों में, सदा रहे अनुरक्त । सत्य-अहिंसा जीवन सरगम,सरस दिवा हो नक्त । उन्नति करती राष्ट्र चेतना,शिक्षित रहे समाज। ऊँच-नीच हो भेदभाव के,बने न कोई व्याज। राग-द्वेष के अगनित कारक,जहाँ करें अभिशप्त, सत्य-अहिंसा जीवन सरगम,सरस दिवा हो नक्त । ******* राष्ट्र हितों में जीवन अर्पित, जीवट तन उद्दाम । नगर गाँव तक हथकरघों से,सबको दिया मुकाम । एक वस्त्र शुचिता की माला, पुष्टि भाव संपृक्त । सत्य-अहिंसा जीवन सरगम,सरस दिवा हो नक्त । ******** कुछ कारक संकेत मानिए, दुर्बल करते मान । साक्षी है इतिहास सदा जो,छला गया अनजान। जप-तप की जहँ महके समिधा,भारत हुआ विभक्त । सत्य-अहिंसा जीवन सरगम,सरस दिवा…