ढूँढें सुरमेदानी
#गीत
सखी बावरी आई बरखा, खेत खेत अँखुआए।
रिमझिम गाये फुलवारी घन,मुक्ता हार लुटाए।
कटितट लेकर रस गागर को,
कजरी गाये गुन गुन ।
बनी रागिनी सजल संगिनी
पाँव पैजनी रुनझुन ।
नहा रही मतवाली बदरी,भीगेअम्बर बलखाए।
रिमझिम गाये फुलवारी घन,मुक्ता हार लुटाए।
साँझ हुई ज्यों चमके जुगनू,
ढूँढे सुरमेदानी, ।
लाल हुई ज्यों अँखियाँ दिशि की
मिले नहीं अभिमानी।
दादुर झींगुर मीत बने सब,झंकृत ताल सुनाए।
रिमझिम गाये फुलवारी घन,मुक्ता हार लुटाए।
चंचल मन नभ से भूतल तक
देख हुई छवि श्यामल ।
रात अषाढ़ी पूनम ढलके,
विरहन के बन काजल ।
हुई बावरी तन-मन भीगे, पलकें रही बिछाए ।
रिमझिम गाये फुलवारी घन,मुक्ता हार लुटाए।
डॉ .प्रेमलता त्रिपाठी