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‘गीत हुए महुआरी’
#गीत चैत चली पछुआ अँगनाई ,गीत हुए महुआरी । खड़ी दुपहरी मन भरमावे,पनघट घट पनिहारी । काँधे घड़िला शीश दुशाला, डगर मगर कटि बाला । राह निहारे प्यारी गइया, भामिनि हाथ निवाला । लाज लसे लोचनि रति हौले,झांझर पग झनकारी । चैत चली पछुआ अँगनाई, गीत हुए महुआरी—– रैन दिवस घड़ि पहर न जाने, यौवन भरता पानी । नाचत झुमका लोल कपोलन। रीझत भोर सुहानी । तरुवर छइयाँ ले अँगड़ाई, मुखरित प्राण पियारी चैत चली पछुआ अँगनाई,गीत हुए महुआरी —- बाबुल पाती भेज बुलावें सुधि ले महुआ महके । कनक मंजरी भर अमराई , कुहुक भरे तरु चहके । अगन लगावै वैशाख सखी,चलत पवन अगियारी । चैत चली पछुआ अँगनाई,गीत…
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“गीत हुए महुआरी”
#गीत चैत चली पछुआ अँगनाई,गीत हुए महुआरी । खड़ी दुपहरिया मन भरमावे,पनघट घट पनिहारी । काँधे घड़िला शीश दुशाला, डगर मगर कटि बाला । राह निहारे प्यारी गइया, भामिनि हाथ निवाला । लाज लसे लोचनि रति हौले,झांझर पग झनकारी । चैत चली पछुआ अँगनाई, गीत हुए महुआर—– रैन दिवस घड़ि पहर न जाने, यौवन भरता पानी । नाचत झुमका लोल कपोलन। रीझत भोर सुहानी । तरुवर छइयाँ ले अँगड़ाई, मुखरित प्राण पियारी चैत चली पछुआ अँगनाई,गीत हुए महुआरी —- बाबुल पाती भेज बुलावें सुधि ले महुआ महके । कनक मंजरी भर अमराई , कुहुक भरे तरु चहके । अगन लगावै वैशाख सखी,चलत पवन अगियारी । चैत चली पछुआ अँगनाई,गीत हुए…