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‘लौंग सुपारी के बीड़ा लगा के’
गीत —– रंग बसंती बिखेरे संँवरिया —- धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया । फगुनी बयरिया सजन मन भावै। सुध-बुध छीनै ये जिया तड़पावै । सतरंगी आभा किरण बगरा के, छल-छल छलके है काँधे गगरिया, धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया ——-। अँगना में बोलै सुगन हरजाई । चँवर डुलाती जो गयी तरुणाई । लौंग सुपारी के बीड़ा लगा के, यौवन की आई खड़ी दुपहरिया धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया ——–। दर्पण देखत शृंगार हुलसाये । रंग पिया मोहे चटक मनभाये । कटि बलखावे बावरो पग नूपुर, चैन कहाँ पावै अनहद गुजरिया । धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया —–। ———-डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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‘साज कहे आवाज हमें दो’
#गीत साज कहे आवाज हमें दो,चिंता उन्मन घिरती जाए । अनचाहे अभिनय में काया, पसोपेश में ढलती जाए । मौन करे जो अंतस पीड़ा, साँझ सकारे बढ़ी उलझनें । करे गमन सोचे किस पथ पर, चिंतन बनकर लगी उतरने । झंकृत कर दो तार हृदय के,औषधि सरिस उतरती जाए । साज कहे आवाज हमें दो, चिंता उन्मन घिरती जाए । चौखट पर जो खड़ी चुनौती, शनैः शनैः है पार लगाना । भ्रमित करे नित नयी भूमिका, धैर्य रखें हर फर्ज निभाना । सुर सरगम की विमल साधना,दुविधा मन की ढलतीजाए। साज कहे आवाज हमें दो, चिंता उन्मन घिरती जाए । इक जीवन की रथ यात्रा में, अनुदिन मिलते सत्य अनोखे…