रूप बदल कर फागुनी गोरी
#गीत
दृग भरमाये फागुन प्रीतम ,पीत हरित चहुँओर सखी री !
यौवन पर है सनई सरपत, रीझ गए मतिभोर सखी री !
अंग-अंग में अलख जगाए,
खिली धूप लेकर तरुणाई ।
रूप बदलकर फगुनी गोरी,
उड़ते आँचल ले अँगड़ाई ।
रंग भरे पुलके वासंती, शरमाये दृगकोर सखी री ।
यौवन पर है सनई सरपत,रीझ गए मतिभोर सखी री !
भ्रमर प्रभाती सुधा पिलाये ।
जाग उठे कोरक नलिनी के,
नील गगन से आभा निखरी,
लोल लहर लहरें तटिनी के ।
मीन मगन पर नैन भयातुर,भागीं देख अँजोर सखी री ।
यौवन पर है सनई सरपत, रीझ गए मतिभोर सखी री !
सुधियाँ आयीं होली लेकर,
रंग भरी कलसी ढलकातीं ।
नैन भिगोकर मन मुस्काये,
अक्षि पटल पर चित्र बनातीं
यादें मीठी खींच रही हैं,#लता-प्रीत की डोर सखी री ।
यौवन पर है सनई सरपत, रीझ गए मतिभोर सखी री !
—————डॉ प्रेमलता त्रिपाठी