गूँज उठा कैलाश नग
#गीत
फागुन आयो रे सखी, मुदित हुए कचनार।
सुमुख कली शैफालिका,अवनि करे गुलजार।
मदन बाण मन मोहिनी, चला रहे ऋतुराज,
श्वेत बसंती चहुँ बिछे, सरसों;- हरसिंगार ।
फागुन आयो रे सखी, मुदित हुए कचनार।
शिव व्याहन को चल पड़े,सजी लगे बारात ।
औघड़ दानी स्वयं जो,गण समूह के तात ।
पहन चले बाघम्बरी, माथे सजा मयंक,
पारिजात अभिसार से,महका मन अहिवात ।
गूँज उठा कैलाश नग, महादेव जयकार ।
फागुन आयो रे सखी, मुदित हुए कचनार।
बेलपत्र , धतूरा के ,अजब निराले ढंग ।
बेढब औघड टोलियाँ,नाचें पीकर भंग ।
दक्षसुता को व्याहने, नंदी पर अवधूत,
डम डम डमरू नाल पर,मुदित चले हुड़दंग
हरित गुलाबी पीत की,रंगों की बौछार ।
फागुन आयो रे सखी, मुदित हुए कचनार।
पुष्प चढ़ा मंदार के, तिलक रोचना भाल ।
दक्ष सुता त्रिपुरारि को,पहनाये जयमाल ।
पूजन करते आरती ,पर्वत राज समाज,
मातु दुलारी पार्वती, चूनर ओढ़े लाल ।
गौरी-शंकर साथ की, महिमा अपरंपार।
फागुन आयो रे सखी, मुदित हुए कचनार।
—————————डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी