‘अरे ! ऋतुराज आओ तुम’
#गीत (छंद विधाता )
बिखेरो रंग वासंती,अरे ! ऋतुराज आओ तुम ।
करें सब आचमन जिसका,पवन खुशबू बहाओ तुम!
सुखद अहसास देती जो,
किरण हो भोर सी पावन ।
मधुप की प्रीति मधुशाला,
महकता ही रहे आँगन ।
सजेंगें प्रेम से तन मन, मनुजता से सजाओ तुम ।
बिखेरो रंग वासंती,अरे!ऋतुराज आओ तुम ।
खिलेगी माधवी जूही,
सहज हो श्वांस मधुमासी ।
मिले बिछुड़े बहाने से,
भले हो आस आभासी ।
गली पथ को सजाना है,मने उत्सव न जाओ तुम
बिखेरो रंग वासंती,अरे!ऋतुराज आओ तुम ।
‘लता’ भी रागिनी गाये,
मदन मन मोहिनी माधव ।
शिवम जन-जन समाये जो,
बसे प्रति प्राण में राघव ।
विधाता ने रचा जिनको,उन्हें जीना सिखाने तुम।
बिखेरो रंग वासंती,अरे!ऋतुराज आओ तुम ।
————@DrPremlata Tripathi
वासंती
(सं.) [सं-स्त्री.]जूही,माधव,गनियारी,मदनोत्सव,
एक रागिनी,एक छंद।