“मुस्करा प्रभा उठी”
#गीत
दिव्य शक्तियाँ जहाँ खुशी स्वरूप धारतीं ।
मुस्करा प्रभा उठी कली-कली खिला रही ।
लालिमा विहान की दिगंत में मिला रही ।
पंक्तियाँ विहंग की मगन-गगन विहारतीं ।
भावना नहीं अलस प्रभात को निखारतीं ।
दिव्य शक्तियाँ जहाँ खुशी स्वरूप धारतीं ।
हिंद है अखंड आन-मान को सँवारिए ।
हार -जीत राग-द्वेष पुण्य से न हारिए ।
कष्ट शीत द्वंद्व या बयार से उबारतीं ।
रश्मियाँ सदैव भेदभाव को नकारतीं ।
दिव्य शक्तियाँ जहाँ खुशी स्वरूप धारतीं ।
प्राणवान हो सदा सहर्ष कर्म आप से ।
कष्ट व्याधि हो नहीं समाज धर्म आप से ।
वृद्ध बाल वृंद से युवान को सँवारतीं ।
प्रेम सत्य मार्ग हो कुव्याधि नित्य हारतीं।
दिव्य शक्तियाँ जहाँ खुशी स्वरूप धारतीं ।
—————-डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी