कहती ग्वालन राधिका
#गीत
श्याम प्रीत की डोर सँभालो,
कहती ग्वालन राधिका ।
पीर हरो पिय,आकर मेरी, पुष्पित हो उरमालिका ।
मधुर बाँसुरी सुन मन रीझे,रहूँ तुम्हारी साधिका ।
भर दो सुर लय ताल साँवरे
सरस भाव अमृत पावन ।
बाट जोहती प्रिया तुम्हारी,
मधुबन सखा घन सावन ।
भटक रही तनु श्यामल गोरी,
धेनु सकल विकल कानन ।
ढूँढ रही हैं वन-वन तुमको, श्यामा कृष्णा सारिका ।
मधुर बाँसुरी सुन मन रीझे, रहूँ तुम्हारी साधिका ।
कल-कल बहती यमुना गह्वर,
तट तारिणी हरि माया ।
लहर लहर पर छाप तुम्हारी,
कदंब हरित की छाया ।
द्वेष भूल हे ! नटवर नागर-
नाग कालि को भरमाया ।
गगनांचल से पुष्प झरे ज्यों, चमक जगाये तारिका ।
मधुर बाँसुरी सुन मन रीझे, रहूँ तुम्हारी साधिका ।
अतल वितल सतह सँभारो,
जोड़ पिया सरस बंधन ।
पार लगा दो श्याम साँवरे,
धर्म पथिक सारथि स्यंदन ।
अनघ* जगत की गरिमा तुम्हसे
सखे मिटा कुलिश क्रंदन ।
“लता” न छूटे प्रेम साधना, सुनो ईश हे द्वारिका ।
मधुर बाँसुरी सुन मन रीझे, रहूँ तुम्हारी साधिका ।
डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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*अनघ = पाप रहित, निरापद, सुंदर, पुण्य।