रश्मि रथी प्रतिपाल
गीत-
कर्म विलसता जीवन तपकर,देकर हमें मिसाल ।
जीवन साधे प्राची दिशि से,रश्मि रथी प्रतिपाल ।
*लक्ष्य बिना फिर जीना कैसा,
मौन रहा आधार ।
मधु पराग रस सिञ्चित क्यारी,
मधुकर पद सञ्चार ।
शून्य गगन औ धरा बीच हम,सभी घिरे भ्रमजाल ।
जीवन साधे प्राची दिशि से,रश्मि रथी प्रतिपाल ।
*पालन करता स्वयं विधाता,
कर्म हमारे हाथ ।
जीवन माला हरिनाम सखे,
कृपा ईश जग साथ ।
विपुल संपदा मानव तन-मन,हम हैं माला माल ।
जीवन साधे प्राची दिशि से,रश्मि रथी प्रतिपाल ।
*नेक साधना हाथों में फिर,
भाग्य कहाँ अनजान,
विविध कर्म माया नगरी में,
सच की कर पहचान,
धैर्य साध बढ़ते जाना मत,भाग्य भरोसे टाल ।
जीवन साधे प्राची दिशि से,रश्मि रथी प्रतिपाल ।
*कर्म लगाये पार सभी को,
शिथिल करे अनुराग,
सदा चित्तवृत्ति वैराग से,
उन्नत होना जाग ।
चंचल मन को रोक सकें जो,तन को करे निढाल ।
जीवन साधे प्राची दिशि से,रश्मि रथी प्रतिपाल ।
…….. …..डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी