दुश्चिंताएँ
#गीत
चिंतन हो पर दुश्चिंताएँ —
कह दो उनसे पास न आए ।
कितनी गहरी अर्थ भरी हो,
बातें जिन की खास सुहाए ।
छीना जिसने जग की खुशियाँ
निशा घुली अरमानों वाली ।
दे न सकी जो नेह निमंत्रण,
सूनी सेज रही जो खाली ।
लिखते गये पृष्ठ अतीत के,
बैठी उन्मन रास न आए ।
यादें मीठी बातें उनकी
सपने वे जो लगे किनारे ।
देकर दर्द न जाये रैना,
उनको प्रतिपल रही सँवारे
ढूँढ रही मंजिल अपनी जो
नयी नज्म विश्वास जगाए ।
निष्ठुर जग की रीति निभाना
धड़कन छीने चिंता घाती,
साथ चले अनुकूल नहीं ये,
जिसको कहते अपनी थाती
‘लता ‘हृदय से भेद मिटा दो-,
कठपुतली सम दास बनाए ।
————–++डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी