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दुश्चिंताएँ
#गीत चिंतन हो पर दुश्चिंताएँ — कह दो उनसे पास न आए । कितनी गहरी अर्थ भरी हो, बातें जिन की खास सुहाए । छीना जिसने जग की खुशियाँ निशा घुली अरमानों वाली । दे न सकी जो नेह निमंत्रण, सूनी सेज रही जो खाली । लिखते गये पृष्ठ अतीत के, बैठी उन्मन रास न आए । यादें मीठी बातें उनकी सपने वे जो लगे किनारे । देकर दर्द न जाये रैना, उनको प्रतिपल रही सँवारे ढूँढ रही मंजिल अपनी जो नयी नज्म विश्वास जगाए । निष्ठुर जग की रीति निभाना धड़कन छीने चिंता घाती, साथ चले अनुकूल नहीं ये, जिसको कहते अपनी थाती ‘लता ‘हृदय से भेद मिटा दो-,…