“धुंध दुशाले ओढ़े अंशुक”
#गीत
सजे घनेरे झीने पर्दे, मेघदूत नभ द्वार के ।
सहज गुलाबी बिछे गलीचे,उन्नत वृक्ष चिनार के ।
प्रकृति पिलाती हाला मद में,झूम उठा तन बावरा,
बना आशियाँ ठहर गया मन,तनिक उठा कब हार के ।
सजे घनेरे झीने पर्दे, मेघदूत नभ द्वार के । ——
पंख लगे घन हंस युगल से,खेल रहे आमोद में
“धुंध दुशाले ओढ़े अंशुक”,सोती ज्यों नभ गोद में
प्रीत गुहारे श्वेत श्याम में,हरषे मुकुलित नैन को,
उलझे कुंचित केश लुभाए,स्वप्निल सैन बयार के ।
सजे घनेरे झीने पर्दे, मेघदूत नभ द्वार के । ——
दूर छितिज से उगी लालिमा,सतरंगी परिधान में ।
लोल कपोलों पर छायी जब,ताम्र वेश अवसान में ।
धरा गगन से अनुबंधों में, रचना अनुपम नेह की,
मुग्ध सृजन में लता प्रेम है,वशीभूत संसार के ।
सजे घनेरे झीने पर्दे, मेघदूत नभ द्वार के । ——
————————डॉ प्रेमलता त्रिपाठी