“नयन झुकते समर्पण में”
छंद- विजात
मापनी- 1222 1222
समांत – ओती <> अपदांत
दृगों में वेदना सोती ।
छिपे ज्यों सीप में मोती ।
नयन झुकते समर्पण में,
हया हृद गेह में होती ।
बसी कटुता नयन जिसके,
सदा वह शूल ही बोती ।
भरे मुस्कान जीवन में,
कुटिलता क्यों उसे खोती ।
महकती प्रेम की बगिया
हँसे अँखियाँ नहीं रोती ।
————–डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी