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“आभार जीवन हो”
गीतिका —- आधार छन्द – माधुरी 2212 2212 2212 22 पदान्त-जीवन हो, समान्त-आर ◆ माँ शारदे आशीष दें, अविकार जीवन हो। छलछद्म को मौका न दें,अधिकार जीवन हो । आये कहीं जो द्वार पर, भूखा नहीं लौटे, इतनी कृपा मुझ पर करें,उपकार जीवन हो । हो अर्चना अपनी सफल,मन से मिले मन यूँ, मतभेद मन के सब मिटे, त्योहार जीवन हो । अनुकूल हो कर शांत रस,दृग ज्योति भर दे माँ , माधुर्य लेखन कामना, आधार जीवन हो । माया जगत व्यापे नहीं,नैया तरेगी प्रभु, रिपुवंश का संहार कर,आभार जीवन हो । अर्पण लिए पूजा फले, संघर्ष करना हो, सच राह से मुकरें नहीं, शृंगार जीवन हो । याचक रहे…
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“माँ की ममता”
आधार छंद सरसी मात्रा 27-16,11पर यति सामांत – आर , अपदांत गीतिका —– कविता मोहक भाव कलश है,भरते हम उदगार । मुखरित वाणी से छलके जो,करे प्रीति संचार। नख शिख वर्णन से न सजे जो,अंतस रहे अधीर, साहस और रवानी भर दे,कविता वह आधार । एकाकी मुस्कान भरे मन,सृजन सहज का साथ, नृत्य करे तन तरुवर झूमें, रसवंती जस नार । भोली सुखदा महक उठे,कोमल कलिका छंद, घुल मिल जाते कवि रचना में,डूब करें अभिसार । रहते मद में चूर सदा जो, दंभ भरें आकाश करें खोखला अंतस प्रतिफल,अंत हुए लाचार । बाधाओं को चूम प्रकृति भी, देती है मधुमास, सुख दुख के ताने बाने का,सुंदर यह उपहार । माँ…
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“नयन झुकते समर्पण में”
छंद- विजात मापनी- 1222 1222 समांत – ओती अपदांत दृगों में वेदना सोती । छिपे ज्यों सीप में मोती । नयन झुकते समर्पण में, हया हृद गेह में होती । बसी कटुता नयन जिसके, सदा वह शूल ही बोती । भरे मुस्कान जीवन में, कुटिलता क्यों उसे खोती । महकती प्रेम की बगिया हँसे अँखियाँ नहीं रोती । ————–डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी