“है मसीहा कौन”
गीतिका
मानते हैं जुर्म,का चारो तरफ है जोर अब ।
है मसीहा कौन देखे आँसुओं के कोर अब ।
अस्मिता लुटती जहाँ पर एक बारी जानिए,
कर जिरह हर बार छीने हर गली हर छोर अब ।
कर रहे अपराध मिलकर वे सभी ये प्रति प्रहर,
व्यर्थ करतें है अमानी रात काली भोर अब ।
भीत जनता में अदालत से निराशा जानिए ,
वादियों प्रति वादियों में हो रही बस शोर अब।
फर्ज अपना हम निभाते गर चलें हम देश हित,
राह बेमानी छले बिन सत्यता हर पोर अब ।
प्रेम जग में त्याग अर्पण एक दूजे में सधे,
बाँधते रिश्ते न जाने कौन सी हो डोर अब ।
——————-डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी