• गीतिका

    गजानन

    #गजानन आओ मेरे द्वार । सुखद तुम मूषक सजे सवार । विराजो गौरी अंक गणेश, तुम्हारी महिमा अपरम्पार । छंद – दिग्बधू ( मापनीयुक्त) 221 2122 221 212 गीतिका —- अंतस विमल करो हे देवा नमन तुम्हें। दे दो सदा रहे यों खुशियाँ सदन हमें । ममता लुटा रही माँ मलयज बयार सी, स्वागत अँगन हमारे कर दो मगन हमें । चाहे न लेखनी यह आसन उधार अब, हिंदी प्रखर बने दो रसना दसन हमें । मुक्ता लड़ी बनाऊँ आखर सँवार दूँ , चाहूँ न मौन व्रत अब करना सृजन हमें । बन प्रेम इन दृगों में मनमोर नाचता, दो शारदीय आभा शोभित गगन हमें । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी 19/303…

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    गजानन

    #गजानन आओ मेरे द्वार । सुखद तुम मूषक सजे सवार । विराजो गौरी अंक गणेश, तुम्हारी महिमा अपरम्पार । छंद – दिग्बधू ( मापनीयुक्त) 221 2122 221 212 गीतिका —- अंतस विमल करो हे देवा नमन तुम्हें। दे दो सदा रहे यों खुशियाँ सदन हमें । ममता लुटा रही माँ मलयज बयार सी, स्वागत अँगन हमारे कर दो मगन हमें । चाहे न लेखनी यह आसन उधार अब, हिंदी प्रखर बने दो रसना दसन हमें । मुक्ता लड़ी बनाऊँ आखर सँवार दूँ , चाहूँ न मौन व्रत अब करना सृजन हमें । बन प्रेम इन दृगों में मनमोर नाचता, दो शारदीय आभा शोभित गगन हमें । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी 19/303…

  • गीतिका

    रातें गयीं सुहानी

    आधार छंद दिग्पाल गीतिका — बिसरे नही तुम्हें हम,यादें अभी पुरानी । तुमने भुला दिया जो,घडियाँ बनी कहानी । मन में नहीं दुराशा, गाते रहे तराने, मुझको सजा मिली क्यों,रातें गयीं सुहानी । देते रहे सजा तुम,रातें कटे न दिन वे, उनको रही सजाये,ढलती गयी जवानी । पलभर न चैन आये,बातें लगीं अजब सी, सजते रहे नजारे, सदियाँ हुईं रवानी । पथ प्रेम का सहज ये,मंथन करें सभी मिल, शुचिता भरें हृदय में,करिए नहीं अमानी । ————————-डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी

  • गीतिका

    रातें गईं सुहानी

    आधार छंद दिग्पाल गीतिका — बिसरे नही तुम्हें हम,यादें अभी पुरानी । तुमने भुला दिया जो,घडियाँ बनी कहानी । मन में नहीं दुराशा, गाते रहे तराने, मुझको सजा मिली क्यों,रातें गयीं सुहानी । देते रहे सजा तुम,रातें कटे न दिन वे, उनको रही सजाये,ढलती गयी जवानी । पलभर न चैन आये,बातें लगीं अजब सी, सजते रहे नजारे, सदियाँ हुईं रवानी । पथ प्रेम का सहज ये,मंथन करें सभी मिल, शुचिता भरें हृदय में,करिए नहीं अमानी । ————————-डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी

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