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‘डूबती नौका तरंगी’
आधार छंद – सार्द्ध मनोरम मापनी – 2122 2122 2122 समांत – अना, पदांत – है गीतिका —– राह सच होती कठिन ये मानना है । झूठ का हर फंद हमको काटना है । डूबती नौका तरेगी सच सहारे, इसलिए जो पथ सही हो सोचना है। गम नहीं बर्बादियों का फिर बसेगीं, बस्तियाँ वे ; हों सफल आराधना है । कर्म साधक दूर कर मतभेद को हम पौध खुशियों का हमें फिर रोपना है । है चुनौती आज शिक्षा की हमारी, ज्ञान पाये नित शिखर ये कामना है । हिंद के जागृत युवा हों साहसी पर, देश हित में; स्वार्थ उनको त्यागना है। लिख सकें यदि प्रेम करुणा की कहानी,…