-
‘ईर्ष्या से कटे न जीवन’
छंद- सखी /आँसू गीतिका आँसू नहीं सुहाया है । नित्य अधर ने गाया है । प्राच्य दिशा है मनहारी, रवि ने सरस लुभाया है । वसुधा का पावन अंचल, माँ की ही प्रति छाया है । मधु कोष भरें क्यारी हम, कलियों ने समझाया है । शुद्ध चित्त इष्ट- साधना, मन अनंत सुख पाया है । निर्मोही जग ने केवल, मन को नित भरमाया है । ईर्ष्या से कटे न जीवन, प्रेमिल जगत बनाया है । डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी
-
हो अवतार नहीं है
छंद “सार” अर्ध सम मात्रिक. शिल्प विधान चौपाई + 12 मात्रा 16+12 28 मात्रा अंत में 22 वाचिक अनिवार्य समांत – आर, पदांत – नहीं है गीतिका नये दौर में लिखना साथी, अपनी हार नहीं है । हैं अतीत के साक्षी हम जो,वे साकार नहीं है । बचपन से जो रीति निभायी, देखी दुनिया सारी , राग द्वेष मनुहार सहज था,अब आधार नहीं है। धन बल की छाया में जीवन,है खो रही जवानी मात पिता की सेवा करने, का सुविचार नहीं है । पाठ पढ़ा था कुल मर्यादा,लज्जा थाती गहना, भाव प्रीति था नत नयनों में,वह शृंगार नहीं है । टूट गए है सभी मिथक अब,मिथ्या संसृति जागी, गोरख धंधे…