भोर की लाली
आधार छंद द्विमनोरम
मापनी / शिल्प विधान– 2122,2122,2122,2122
गीतिका
गीत मधुरिम रागिनी से पथ बनाते हम चलेंगे ।
मुश्किलों में साथ अपनों का निभाते हम चलेंगे ।
शीत कंपित हर दिशा को दे चुनौती रश्मियाँ ज्यों,
रवि किरण सतरंग सरसिज को खिलाते हम चलेंगे ।
भोर की लाली मनोहर काव्य मय लय छंद संगम,
आचमन कर हिय सरस हो गुनगुनाते हम चलेंगें ।
नाव माँझी ले चलो मँझधार से लेकर किनारे,
हो खिवैया श्याम – रघुवर गीत गाते हम चलेंगे ।
प्रेम ये अनमोल बंधन भाव से समृद्ध अर्पण,
स्नेहमय विस्तार जीवन ये सजाते हम चलेंगे ।
डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी