काल चक्र
छंद लावणी/ताटंक
मात्रा = 30 16,14, पर यति
समांत – आयी <> पदांत है
गीतिका……
काल काल ये काल चक्र है,ये लघु दीर्घ न ढायी है।
जूझ रहे हम सभी समय की,चाल समझ कब आयी है ।
बीते पल की यादें अपनी,चिंतन खोने – पाने का,
अगम अनागत अंत नहीं कुछ,बातें जहाँ समायी है ।
शुभ चिंतन में अविराम रहें,होनी हो कर ही रहती,
संघर्ष रहेगा जीवन भर,अंत भला हो भायी है ।
बुनते ताने बाने जो हम,भरम जाल में फाँसे खुद को,
करनी का फल वही मिलेगा,सुखदा या दुखदायी है।
त्याग प्रेम है जीवन अर्पण,लघुता पीडा़ है मन की ,
करुणा मोती अंतस जिसके,खुशी वहीं मुस्कायी है ।
डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी