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वर्ष बीस बीस
छंद विधाता मापनी- 1222,1222,1222,1222 गीतिका —– दुखी है लेखनी अपनी,कहाँ खोया हमारा कल । किया शृंगार कब तुमने,न यादों में उभरता पल । मिटा हस्ती रहा अपनी, कि दुर्दिन घातकी बनकर, नजर किसकी लगी हमको,गया यह वर्ष करता छल । उठाती टीस है जैसे, दरों दीवार ये आँगन, मिटेगी वेदना निश्चित,हवायें कह रहीं चंचल । धरा ये रत्न गर्भा है, पुनीता है बडी़ मुग्धा, तुम्हें सौगंध इसकी है,सुनो हलधर तुम्हीं संबल । मुकुट मण्डित हिमालय से,भरत भू संपदा अपनी, कहें; ये आँसुओं से अब,न करना तुम तरल आँचल । चहकती प्रात किरणों से,झरोखे खोल कर देखो, सरोवर फिर सुवासित हों,भरे मुस्कान ये शतदल । मृदुल मन प्रेम रस घोलो, उठे…