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जीत घुटने टेक दे
विधा:-गीतिका आधार छंद:-गीतिका(मापनीयुक्त मात्रिक) विधान:-कुल 26 मात्राएँ 14,12 पर यति मापनी:-2122 2122 2122 212 सामान्त:-आना पदांत:-चाहिए मीत सच्चा मन मिले वह,पल सुहाना चाहिए, शुद्ध अपनी धारणा हो, पथ बनाना चाहिए । प्राण घाती स्वार्थ तजिए,मिल सके खुशियाँ तभी, एक दूजे से मिले वह, प्यार पाना चाहिए। जीत घुटने टेक दे उस, पीर का भी अंत हो, हार के बदले विवशता, को मिटाना चाहिए। अंत कर दे जो तमस का,हो उजाला हर सुबह, एक दीपक ज्ञान का हो, वह जलाना चाहिए । मीत जो बनते रुकावट, नासमझ हैं वे सदा, हो रहे गुमराह उनको, राह दिखाना चाहिए । —————डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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अधिकार माँगे
छंद- इन्द्रवज्रा (द्विगुणित) वर्णिक मापनी 22 1 22 1 121 22, 22 1 22 112 122 पदांत- देगी समांत- आन गीतिका — राहें बनातीं अविकार शिक्षा, सोचें भला तो अनुदान देगी । संकल्प पाना अधिकार माँगों,शिक्षा सही हो समा’धान देगी। चिंता बढ़ाये विकराल दंगे,होगें सभी ये दिग भ्रांत मानें, संग्राम घातें हठ से बढे़गी,निंदा सदा ये अवमान देगी । बेबाक बातें दुखड़े न कोई, द्रोही बनें हैं कुछ आततायी, होगी भलाई जिससे कहीं क्या,अंगार है ये नुकसान देगी। जागो उठो देश तुम्हें बचाना,आंदोलनों से कुछ लाभ है क्या? धोखा स्वयं को छलना कहेंगे,चालें कुचालेंअनजान देगी। जागो युवा हे प्रहरी धरा के,भू भारती की गरिमा तुम्हीं से, गाओ तराने वह प्रीत…