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बिखरा हुआ समाज
गीतिका आधार छन्द – सम्पदा मापनी – 221 2121 1221 2121 गागाल गालगाल लगागाल गालगाल बिखरा हुआ समाज,सहे वेदना अपार । बाधा हरो सुजान,सहज नीति लो विचार । हारा लगे विवेक, सभी कर रहे विवाद, विश्वास खो अधीर,उगलते सतत विकार । आस्था हृदय विशेष,करो धर्म-कर्म नेक, श्री राम जी सहाय, सुने दीन की पुकार । तज मोह निर्विकार,भजो दीनबंधु नाथ, मंदिर बने विशाल,खुले नित प्रवेश द्वार । अनुबंध हो सप्रेम, मिले राह भी अनेक, निर्माण मूल स्रोत, यही मानिए न हार । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी