• गीतिका

    राहें बनाती है।

    मापनी – 1222 1222 1222 1222 समान्त – आती पदांत – है गीतिका नयन से दूर हो जो तुम,उदासी यह न जाती है । सुखद यादें जहाँ हर पल,हमें यों ही सताती है । तड़पना यह जरूरी है,सही अहसास का होना, निकट हों फासले मन में,करीबी यह न भाती है । चलो अच्छा हुआ अपने,पराये का पता होना, दुखों में साथ जो अपने,कहानी वह सुहाती है । भटकते भाव मधुरिम जो,उबरते डूब कर ही हम, मुझे तुमसे तुम्हें मुझसे, यही हमको मिलाती है बनाकर राह बढ़ते खुद,सहज पाते स्वयं को हम, जहाँ बंधन लगे रिश्ते, न ये चाहत कहाती है । सबेरा नित किया करती,चहकती प्रीति अभिलाषा, महकती शाख वह…

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