याद आओ न तुम
आधार छंद – वाचिक स्त्रग्विणी
मापनी- 212 212 212 212
गालगा गालगा गालगा गालगा
समान्त-आओ,पदान्त-न तुम
[ गीतिका ]
दूर रहकर भले याद आओ न तुम ।
पर मिलन की अनल यों बुझाओ न तुम ।
गर्व तुम पर रहे मान करती रहूँ,
नैन से जल किसी के गिराओ न तुम ।
लेखनी हो तुम्हीं कर्म की सारथी,
दर्प मन में कभी तुच्छ लाओ न तुम।
धीर गंभीर लेखन प्रखर भावना,
संग चलती रहो पथ दिखाओ न तुम ।
नित महकती रहो फूल बन कर वहाँ,
रूठती वादियों मान जाओ न तुम ।
यान अभियान आकाश तक ज्यों बढ़ा ,
चूम लो हर शिखर पग बढ़ाओ न तुम ।
कम हुआ दर्द कशमीर मन में खुशी ,
नीतियाँ औपचारिक लगाओ न तुम ।
कारगिल संग लद्दाख है झूमता,
देश से प्रेम ऐसा जगाओ न तुम ।
डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी