संदेश
आधार छंद – सुमेरु
मापनी 1222 1222 122
गीतिका ——
धरा को पाप का संगम बनाया ।
अरे ! मानव न तू अब भी लजाया ।
रही यह राम की धरती जहाँ पर,
अनैतिक कर्म को प्रतिदिन बढ़ाया ।
मधुर बंसी न मोहन अब सुनाते ,
नहीं घनश्याम जैसा मित्र पाया ।
विधर्मी कर रहे जीवन भयावह,
कहाँ हो शिव गरल जिसमें समाया ।
विकल वसुधा लगी है आग चहुँ दिक,
तुम्हारा आगमन सावन सुहाया ।
रहा अवशेष जो उसको बचा लो,
सदा से स्नेह ने दीपक जलाना ।
बहाओ प्रेम की गंगा तनिक तुम,
मिलेगा पुण्य यदि हमने कमाया ।
डॉ प्रेमलता त्रिपाठी