रात में
आधारछंद – वाचिक स्रग्विणी
मापनी – 212, 212 ,212 ,212
समांत – अरी , पदांत – रात में
गीतिका —-
रागिनी जो सजी साँवरी रात मेंं ।
बन सँवर मैं गयी बावरी रात में ।
जो खुले थे झरोखे बयारें चलीं,
बज उठी पैजनी पाँव री रात में
संग गाती बहारें उड़ा मन कहीं,
रोक पाये न कोई दाँव री रात में ।
साजना बिन तुम्हारे अधूरी रही,
प्राण जोगन फिरे गाँव री रात में
प्रेम यादें सतातीं निशा बीतती,
देख दुल्हन बनी काँवरी रात में ।
डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी