बादल
गीतिका —-
आधार छंद — वाचिक जतरगा
मापनी — 12122 12122
समान्त – आर<>पदांत – बादल
बिखर रही जो निखार बादल ।
उलझ गयी जो सँवार बादल ।
नयन निहारे पलक बिछाये ।
मयंक पहले उतार बादल ।
न चाँदनी का पता कहीं है,
न चैन आये करार बादल ।
विहाग गाता चला पथिक जो,
विहग बसेरा उजार बादल ।
लगे अमावस घिरा सकल हो,
बिखेर तारे हजार बादल ।
सप्रेम गलियाँ महक उठेंगी,
निकाल मन का गुबार बादल ।
डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी