शुभकामनाएँ
मनीषी मंच ——-
गीतिका ——
झूम उठा मन यौवन छाया ।
देख सखा मधुमास सुहाया ।
कली गली शोभित अँगनाई,
मीत रसाल अजब बौराया ।
कंचन सर्षप पीत वधूटी,
खनके नूपुर मन भरमाया ।
लोचन खंजन मनस विहंगा,
छलके मधुरस फागुन आया ।
रंग भरे नभ भूतल शोभा,
बन रसिया मनमीत लुभाया ।
पहरू सीमा साध रहें हैं,
बन रक्षक संकल्प उठाया ।
देश प्रेम का चोला पहने,
रंग वसंती है रंँगवाया ।
डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी