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गूँजती पद चाप
गीतिका —-
गूँजती पद चाप जो उर में समाते तुम रहे ।
राग की रोली बिखेरे पथ दिखाते तुम रहे ।
शून्य अधरों पर हया मुस्कान बन कर छा गयी,
प्यास जन्मों के विकल मन की बुझाते तुम रहे।
कंटकों में राह तुमने ही बनायी दूर तक,
फूल बनकर श्वांस में यों पास आते तुम रहे ।
लौट आओ हर खुशी तुमसे जुड़ी हैआस भी,
धूप की पहली किरण बनकर सजाते तुम रहे ।
हो हृदय नायक इशा विश्वास भी तुमसे सभी ,
स्वप्न सारे पूर्ण हों राहें बनाते तुम रहे।
जल रहा मन द्वेष से हर पल विरोधी सामना,
मूल्य जीवन का सतत यों ही सिखाते तुम रहे ।
मुक्त मन संघर्ष से होगी सुवासित हर दिशा,
प्रेम इक मुस्कान में खुशियाँ लुटाते तुम रहे ।
डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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