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“बीड़ा उठाना”
छंद – वाचिक भुजंगप्रयात मापनी- 122 122 122 122 समान्त – आना, अपदान्त गीतिका महकता स्वयं सत्य बीड़ा उठाना । मिले कीर्ति मन में नहीं दंभ लाना । तपें स्वर्ण बनकर निखरते तभी हम, तनिक आपदा में नहीं हार जाना। सुमन हर कली पर सजी ओस मोती, उठो संग दिनकर तुम्हें पथ सजाना । न शीतल हिना हो न चंदन महकता, महकती मनुजता इसे तुम बनाना । सजे कर्म निष्काम होते जहाँ वह, नहीं अर्थ केवल हमें हो कमाना । सजे प्रेम तन-मन कटे सार जीवन, बँधे बंधनों में हमें वे निभाना । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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क्यों ? उदास हम!
गीतिका — मात्रा= 30 -14,16 पर यति समांत – आरे, अपदांत घनी उदासी छायी क्यों?,क्यों मन मारे बैठें हारे । खट्टी मीठी यादों की,खुशियाँ हैं जो बाँह पसारे । जहाँ तहाँ थमी हुई हैं,आशाएँ वे कदम भरे अब, उद्वेलन हो लहर लहर,एक चंद्र सौ बार उतारे । क्रम यही जीवन माने,उठते गिरते आहत सुख कर, श्वांसों में घुल मिल जाते,अंग अंग हर पोर दुलारे । आँसू मोती बन उठते,चलते चलते चरण अनथके समय समय पर बीते पल, देकर जाते बड़े इशारे । फिर नूतन करना हमको,मिटा दूरियाँ आगे बढ़ना, कुछ खोने सब पाने हित,प्रेम जलाकर दीप सँवारे । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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हिंद हिंदी हिंदुस्तान
हिंदी दिवस पर —– समर्पित गीतिका छंद- सार समांत- अते , पदांत- जायें देश निराला अपना तन मन, अर्पण करते जायें । द्वेष नीति जो मढ़ते आकर,स्नेहिल बनते जायें । हिंद देश की भाषा हिन्दी,जननी प्रिय जन मन की, मधुर मधुर कान्हा की बंसी,रूठे मनते जायें । शिखर चमकता दिनमान यथा,जागे यह मनभावन , शब्द तरंगित हिंदी महके,राही गुनते जायें। शाम सुरमई झिल-मिल तारे,नींद पाँखुरी लेती, छिटक चंद्रिका दुलराये जब, सपनें बुनते जायें । राम कृष्ण की पुण्य भूमि यह,सुंदर अपना मधुबन, यह गौरव इतिहास हमारे, सदा महकते जायें। कटुता कर क्यों क्षार बनायें,हृदय शूल को बोकर, हिंदी हृदय विश्वास प्रेम है’,तन-मन सजते जायें । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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!!अमर शहीदों को नमन !!
आधार छंद- वाचिक भुजंगप्रयात 122 122 122 122 मापनी- लगागा लगागा लगागा लगागा शहीदों नमन हिंद अपना सुहाना । शहादत तुम्हारी नहीं है भुलाना । कभी शीश अपना झुका जो नहीं है, नजर से नजर तुम उठा कर मिलाना । मिले मान जीवन मिटाकर कुटिलता, हमें नेक नीयत सदा है बनाना । लगे जो हया की कभी बोलियाँ तुम, हृदय ज्वाल फूटे नहीं चुप लगाना । घुटन भर रहीं राजनीतिक मिसालें, सिसक तंत्र की है हमीं को मिटाना । सजी पालकी हो धरा ओढ़ चूनर, हरित मातृ अंचल सदा तुम सजाना । शिखर भानु शुभ दिन सजाता रहेगा, नवल क्रांति लेकर हमें पग बढ़ाना । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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70वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई
शीर्षक ---सफर/ यात्रा / भ्रमण गीतिका --- छंद -- भुजंग प्रयात (वाचिक) मापनी --122 122 122 122 समांत - आता, पदांत - बहुत है सफर हो अकेला सताता बहुत है । तनिक फासले को दिखाता बहुत है। कहीं दूरियाँ हम मिटाने चले जो, जिसे चाहता मन रुलाता बहुत है। जहाँ पास बैठा बने अजनबी वह, मिली देख नजरें चुराता बहुत है । न यात्रा सफल बिन सहारे कहीं भी, मिलन हो क्षितिज सा सुहाता बहुत है। न मीलों थकन मीत मन का मिले जो, रसिक रागिनी बन रिझाता बहुत है । लगन साधना में यती बन चला जो, भ्रमण भोग जीवन सिखाता बहुत है । झुका कर नजर मौन देता…