• #गीत

    “उन्नति करती राष्ट्र चेतना”

    #गीत सत्य-साधना-संकल्पों से, सदा रहें अनुरक्त । चिंतन-मंथन जीवन सरगम,सरस दिवा हो नक्त । उन्नति करती राष्ट्र चेतना,शिक्षित रहे समाज । ऊँच-नीच हो भेदभाव के,बने न कोई व्याज। राग-द्वेष के अगनित कारक,जहाँ करें अभिशप्त, चिंतन-मंथन जीवन सरगम,सरस दिवा हो नक्त । ******* राष्ट्र हितों में जीवन अर्पित, होगा तन उद्दाम । नगर-गाँव हो बहुविध उन्नत,सबको मिले मुकाम । मर्यादा शुचिता की माला, पुष्टि भाव संपृक्त, चिंतन-मंथन जीवन सरगम,सरस दिवा हो नक्त । ******** कुछ कारक संकेत मानिए, दुर्बल करते मान । साक्षी है इतिहास सदा जो,छला गया अनजान । महके समिधा जप-तप की क्यों,मन होता संतप्त, चिंतन-मंथन जीवन सरगम,सरस दिवा हो नक्त । *********************डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

  • #गीत

    “देख सजन लालित्य”

    #गीत हरित कहानी होगी पूरी, तुम से हे! ऋतुराज। विहँस पड़ी ये नव्य मालिका,सुन्दर ये आगाज़। महक उठी रजनी गंधा से,निशा करे अभिसार। धरा सजाए गुलमोहर से, लहके पथ अंगार । फाग बसंती जामा पहिरे, पटुका बाँथे भाल । फूलन से बगिया सँवरी नित,हरित पीत तन लाल । माँग भरो सिंदूरी आकर,तुम मेरे सरताज । हरित कहानी होगी पूरी तुम से हे!ऋतुराज। मंत्र पूत हो नित्य साधना, प्रियवर तुम आदित्य । ओढ़ चुनरिया वसुधा रोपे, देख सजन लालित्य। मोह रहा मन दिग दिगंत तक,तुम जो आये कंत । वर्ष-वर्ष तक वैभव तेरा , सदा रहे जीवंत । फूल-फूल औ पात-पात से,उपवन करते नाज, हरित कहानी होगी पूरी तुम से हे!…

  • #गीत

    “हँसना जग से जाना”

    #गीत ————— बंधन प्यारा नेह देह का,बुनकर ताना बाना । रोते रोते आये थे हम, हँसना जग से जाना । लुक छुप करते बचपन बीता,आयी जब तरुणाई । मुड़ कर तेरा दीद करूँ क्या, हँसती है अरुणाई । सब रस बाहें फैलाये वह, सुंदर लगा सबेरा, ऊँच नीच या भेदभाव हो, कोई नहीं बहाना । रोते रोते आये थे हम, हँसना जग से जाना । समझ न आये किस पथ जाना,फूल कहीं थे काँटे । सुख दुख की छाया में बीते, मिलकर हमने बाँटे । अपने और पराये की नित, दुनिया करे बखेड़ा, जगत साधना सत्कर्मों की,उसको सफल निभाना । रोते रोते आये थे हम, हँसना जग से जाना ।…

  • #गीत

    “लक्ष्य सही हो दिशा मिलेगी”

    लक्ष्य सही हो दिशा मिलेगी,संस्कृति अपनी कहती । गंगाजल की शुचिता जिसमें, हरिगुन लेकर बहती । दूध-पूत से धरा नहाई, अब तक बीतीं सदियाँ, संतों से अभिमंडित आश्रम,बलखातीं ये नदियाँ । कर्म प्रमुख है मनु जीवन में,संबल तुम हो धरती । ————गंगाजल की शुचिता जिसमें, हरिगुन लेकर बहती । लिखित सभी हैं साक्ष्य आज भी,अवतारों की बातें । जीवन-यापन करने निश्चित,देव धरा पर आतें । ऊँच नीच की कलुष दाँव में,मिटती कंचन काया , थिर न रहे यह दंभ मान जो, मही हमारी डरती । ————–गंगाजल की शुचिता जिसमें, हरिगुन लेकर बहती । कंचन होना पारस छूकर, कथन नहीं मन बाँधे । क्या खोया या पाया आकर, जीव उठा तन…

  • #गीत

    राम रमैया गाए जा

    श्रीराम नवमी की हार्दिक बधाई अनंत शुभकामनाएँ #गीत राम रमैया गाए जा मन, मिटे सभी संताप। राम-राम कह अलख जगा लें,सार्थक होगा जाप। भाल लगाए रोली चंदन, दर्शन कर श्री धाम, तन कटुता की भेंट चढ़े मत,व्यर्थ सभी आलाप । राम रमैया गाए जा मन, मिटे सभी संताप। राम जन्म की पावन गाथा, हम सब का आदर्श । हरि अनंत की कथा सनातन,जीवन का प्रतिदर्श । राम सरिस आदर्श पुत्र को,शत-शत करूँ प्रणाम, राम-राम मुख ला न सके जो,करते व्यर्थ विलाप । राम रमैया गाए जा मन, मिटे सभी संताप। अनुपम शोभा दाशरथी की,कोमल कांति सु चित्त, कर्म भूमि हित सधी प्रत्यंचा,अनुपम जीवन वृत्त । रचते हैं श्रीराम जहाँ पर,…

  • #गीत

    सत्यसंध हैं न्यारे

    #सखाप्रेम (बाल सखा निषाद राज गुह ) ———————— #गीत अति प्रसन्न गुहराज बुलाकर, बंधु समेत हुँकारे । जन्म सफल जो आज हुआ है,अहो भाग्य प्रिय द्वारे , सत्य सनातन के रखवारे, सखा भानुकुल पालक, हित संकल्प लिए किस कारण,मति मलीन के घालक । राज भोग की नौका छोड़ी,होकर वन के सेवी, संग सुता हैं जनक-दुलारी,कुलवधु रघुकुल देवी । अवध सहित व्याकुल परिजन,विरह-अनल तन जारे । जन्म सफल जो आज हुआ है,अहो भाग्य प्रिय द्वारे । कंठ हुए अवरुद्ध सोचकर, प्राण सखा का रोया , हस्त कमल जो रोप रहे हैं,सखि आनन को धोया ध्यान लगा कर सुनिए सुधिजन, करें सभी अभिनंदन, राम रथी प्रतिपाल जगत के, करिए मन को स्यंदन…

  • #गीत

    “महके राह कपूरी”

    #गीत अब के बिछुडे़ कहाँ मिलेंगे,राही कर ले यात्रा पूरी । पथ पर साथी चलते-चलते,मिटा सकेंगे हम ये दूरी । भूले-भटके सुध-बुध खोकर, साँझ परे जो घर को आए । रंग बदलकर फागुन आया, लगी लगन जो बुझा न पाए । जलते पथ के दीवट तुमको,साँझ बुलाए नित सिंदूरी । अब के बिछुडे़ कहाँ मिलेंगे,राही कर ले यात्रा पूरी । रात-रागिनी-रजत-रेणुका, नभ को भाए चाँद सलोना। चला अकेला धवल कांति ये, कोई लगाए इसे ढिटोना । पथिक न कोई साथ चले जो,बनकर महके राह कपूरी, अब के बिछुडे़ कहाँ मिलेंगे,राही कर ले यात्रा पूरी । इक परछाईं चले साथ जो, अपने पन में सिमटे पलछिन। डूब रहा ज्यों मन वैरागी,…

  • #गीत

    “सुंदर सुखद बसंत”

    #गीत हुई निनादित मौन अर्चना, हर्षित मन उद्गार । वनबाग उपवन ताल सगरे, हमने लिए उधार । पृष्ठ-पृष्ठ पर अंकित कथनी, करते हम जीवंत । आती-जाती ऋतुएँ कहतीं, सुंदर सुखद बसंत । एकाकी मुस्कान भरे मन,आखर लगे बयार। वनबाग उपवन ताल सगरे,हमने लिए उधार। विरह-मिलन की त्रिगुण भाव की, उद्यम करते काव्य । सरल नहीं है इन्हें साधना, श्रम करता संभाव्य । साक्षी हैं वाणी के साधक ,कलम करे अभिसार । वनबाग उपवन ताल सगरे, हमने लिए उधार। श्रद्धानत करते चरित्र जो, कलम लिखे जयबोल । लिख जाते अध्याय जहाँ, घर आँगन भूगोल । मन की गागर सागर बनकर,’लता’ बढ़े सितधार । वनबाग उपवन ताल सगरे, हमने लिए उधार। —————-डॉ.प्रेमलता…

  • #गीत,  गीतिका

    ‘अनजान पथिक को ‘

    गीत साँझ नवेली निशा सुहागन,मन विरही का भरमाया । साँसों का अनुपम बंधन,जन्म-मरण तक ये काया । पंख लगे घन लौट रहे ज्यों, थके दिवस के हों प्यारे। चंद्र कौमुदी रजनी नभ-तल, शून्य भरे नभ के तारे। विरह-प्रीति अनजान पथिक को,कैसे हिय में ठहराया। साँसों का अनुपम बंधन, जन्म-मरण तक ये काया । घोल रही हैं चकमक लाली, स्वतःसाँवरी सँवरी सी । चँवर डुलाए पवन वेग से फाग उड़ाती बदरी सी । रंग सभी,बेरंग न जीवन,जिसको कहते हैं माया । साँसों का अनुपम बंधन,जन्म-मरण तक ये काया । भाग्य बदलते कर्म हमारे चले साथ दो पग मेरे । भटक रहे जो दुविधाओं में, नियति नटी जब पग फेरे। राह मिलेगी…

  • #गीत

    ‘अनजान पथिक को’

    गीत साँझ नवेली निशा सुहागन,मन विरही का भरमाया । साँसों का अनुपम बंधन,जन्म-मरण तक ये काया । पंख लगे घन लौट रहे ज्यों, थके दिवस के हों प्यारे। चंद्र कौमुदी रजनी नभ-तल, शून्य भरे नभ के तारे। विरह-प्रीति अनजान पथिक को,कैसे हिय में ठहराया। साँसों का अनुपम बंधन, जन्म-मरण तक ये काया । घोल रही हैं चकमक लाली, स्वतःसाँवरी सँवरी सी । चँवर डुलाए पवन वेग से फाग उड़ाती बदरी सी । रंग सभी,बेरंग न जीवन,जिसको कहते हैं माया । साँसों का अनुपम बंधन,जन्म-मरण तक ये काया । भाग्य बदलते कर्म हमारे चले साथ दो पग मेरे । भटक रहे जो दुविधाओं में, नियति नटी जब पग फेरे। राह मिलेगी…

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