• #गीत

    “राम-राम कह अलख जगा लें,”

    #गीत भाल लगाए रोली चंदन, दर्शन कर श्री धाम। राम-राम कह अलख जगा लें,बनते बिगडे़ काम। राम चरित की पावन गाथा, हमसब का आदर्श, हरि अनंत की कथा सनातन,जीवन का प्रतिदर्श । हिय कटुता की भेंट चढ़े मत,व्यर्थ सभी आलाप, राम सरिस आदर्श पुत्र को,शत-शत करूँ प्रणाम। राम-राम कह अलख जगा लें, बनते बिगडे़ काम। अनुपम शोभा दाशरथी की,कोमल कांति सु चित्त, कर्म भूमि हित सधी प्रत्यंचा,अनुपम जीवन वृत्त । राम-राम मुख आ न सके जो, नहीं कटे संताप, बढ़ते दुसह्य संताप कठिन, उनको दें विश्राम । राम-राम कह अलख जगा लें, बनते बिगडे़ काम। रचते हैं श्रीराम जहाँ पर, स्वयमेव अनुभाव, नारी का सम्मान लिए नित,बढ़ती जाए नाव। राम…

  • #गीत

    “मावस भरे अँजोर”

    #गीत? भाव भरे करसंपुट दीपक, दीप्त करे चहुँओर । रिद्धि सिद्धि से सोहे अँजुरी,मावस भरे अँजोर । थाल सजाकर फूल नारियल, सुरभित कर परिवेश। पूजा करती अँगना अँगना, लक्ष्मी सह प्रथमेश । हाथ जोड़ सब शीष नवाते,ज्योति जले प्रतिछोर । रिद्धि सिद्धि से सोहे अँजुरी,मावस भरे अँजोर । दान भोग औ नाश यही हो, सत्य सही संकल्प । सार्थक हो निज धर्म-कर्म से, क्षुधित न कोई अल्प। राम राज की पुनः कल्पना, लाए प्रतिपल भोर । रिद्धि सिद्धि से सोहे अँजुरी,मावस भरे अँजोर । लता प्रेम की शाख-शाख पर, बढ़ती जाये मीत। वर्ष वर्ष पर दीप दिवाली, झिलमिल गाये गीत । लड़ियों औ फुलझड़ियों से चहुँ,धूम मचे प्रिय शोर ।…

  • #गीत

    ध्रुवक साधना

    #गीत (छंद सरसी) धवल चँद्रिका शरद चंद्र की,अनुपम रूप मयंक। अंबर का शृंगार तुम्ही से, श्वेत स्वच्छ अकलंक । रंग भरे सपनों की कलशी, सजी तारिका नेक । ध्रुवक¹ साधना छंद सृजन के , भाव भरे अतिरेक । दर्शन दुर्लभ तीज-चौथ के,साधक उत्कट बंक² । अंबर का शृंगार तुम्ही से,श्वेत स्वच्छ अकलंक । झरे बूँद रिमझिम तुषार के, सुखदा कांति विशेष, अमिय कमंडल लेकर आये, तृषा मिटी अनिमेष । शुभ्र वेश उन्मेष सजाये, चातक लगे सशंक । अंबर का शृंगार तुम्ही से,श्वेत स्वच्छ अकलंक । साज सरस से छेड़ रागिनी, रीझे शारद विज्ञ, जगा रही ज्यों अलख ज्योत्सना, अनुरागी अनभिज्ञ । वश में अपने कर लेती जो, राजा हो या…

  • #गीत

    “प्यारी लोरी गीत बनी”

    #गीत गूँगे को मीठा मिल जाये,स्वाद नहीं कहने में आये । आज बहुत ही खुश हूँ प्रियवर,तुम मेरे सपने में आये। हीरा माणिक अंक सजाकर, तुम को पाया आँचल में । बिछुड़े थे हम कहाँ तुम्हारे, बहकर गाते काजल में । आँख ढरे सुरमा सुषमा से,बूँद जहाँ गलने में आये। गूँगे को मीठा मिल जाये,स्वाद नहीं कहने में आये । प्यारी लोरी गीत बनी जब, माँ की गोदी गुलजार हुई । दो नयनों की दूरी जैसे – अब कोरों के अनुसार हुई । इतनी यादें कहाँ समेटूँ, प्रात सहज जगने में आये। गूँगे को मीठा मिल जाये,स्वाद नहीं कहने में आये । जोड़ दिया अपना हमसाया, नेह सजल नित अरमानों…

  • #गीत

    “कहाँ संँजोये जोगन”

    #गीत अरी बावरी पथ में बैठी,अपलक किसे निहारे । पिया बटोही रमता जोगी, ठहरे किसके द्वारे । रीत रही मन की गागर ये,मधुशाला जीवन की, खोज रहा हिय सार जगत में,बीते अपने पन की उन बिन ये शृंगार सखी जी,सूना सावन-भादौ, विरह प्रीति अनजान पथिक से,कोर भिगोते खारे । पिया बटोही रमता जोगी, ठहरे किसके द्वारे । घन घननाद करे उन्मादी,नदिया बहती धारा । छलतीं हिय में कोरी बतियाँ,दिन में देखूँ तारा । सखी लुभाये चंद्र चकोरी,किस्से इनके अनगिन, मिलन विरह की पीर निगोड़ी,अपनों से ही हारे। पिया बटोही रमता जोगी, ठहरे किसके द्वारे । लता प्रेम की सींच रहे ये,धीर नयन के अंजन। दाँव पेंच सब लाज धरम को,कहाँ…

  • #गीत

    “धर्म नीति भावों की सरिता”

    #गीत जल में थल में धरा गगन में,तुम बिन कौन सँवारे । मंत्र मुदित मनभावन मंगल, सबको ईश उबारे । मरकत मणिमय निहित सरोवर, किरण प्रभा छवि गुंफित । सुखद सलोनी आभा अविरल, पात-पात पर टंकित। निखर उठा है पंकिल तन ये,मुकुलित नैन निहारे । मंत्र मुदित मनभावन मंगल, सबको ईश उबारे । मीन उलझती रही निरापद, शैवालों में खेले । सरसिज काया मदमाती यों, अगणित बाधा झेले। सतह-सतह पर कुटिल मछेरे,बगुले हिय के कारे । मंत्र मुदित मनभावन मंगल, सबको ईश उबारे । लता सीख देती ये कणिका, मन को करें न दूषित। धर्म नीति भावों की सरिता, निश्चित होगी भूषित । नया सबेरा फिर-फिर आये, कर्मठ मंत्र उचारे…

  • #गीत

    ‘राज इसका कहें आज किससे’

    #गीत प्रीति सरगम लुभाती बहुत है। मृत्यु अंतस दुखाती बहुत है। राज इसका कहें आज किससे, बन ये’ परिहास जाती बहुत है। ——— छद्म दुनिया करे तो जले मन । खोट मन की छुपाता रहे तन । धर्म के काज में भी कुटिलता, नित तृष्णा के छाये रहे घन । घूमती स्वार्थ घाती बहुत है । बन ये’ परिहास जाती बहुत है। ——— प्राण पिंजर बँधा जानते जो। हाथ मलते गया मानते जो । शाम ढलती कहें उम्र की हम, चादरें यों सदा तानते जो । साँझ ऐसी रुलाती बहुत है । बन ये’ परिहास जाती बहुत है। ——— है न सावन झड़ी फागुनी ये। रंग बरसा गयी जामुनी ये।…

  • #गीत

    साक्षी है इतिहास

    “गांधी व शास्त्री जयंती पर समर्पित ————– विकट साधना संकल्पों में, सदा रहे अनुरक्त । सत्य-अहिंसा जीवन सरगम,सरस दिवा हो नक्त । उन्नति करती राष्ट्र चेतना,शिक्षित रहे समाज। ऊँच-नीच हो भेदभाव के,बने न कोई व्याज। राग-द्वेष के अगनित कारक,जहाँ करें अभिशप्त, सत्य-अहिंसा जीवन सरगम,सरस दिवा हो नक्त । ******* राष्ट्र हितों में जीवन अर्पित, जीवट तन उद्दाम । नगर गाँव तक हथकरघों से,सबको दिया मुकाम । एक वस्त्र शुचिता की माला, पुष्टि भाव संपृक्त । सत्य-अहिंसा जीवन सरगम,सरस दिवा हो नक्त । ******** कुछ कारक संकेत मानिए, दुर्बल करते मान । साक्षी है इतिहास सदा जो,छला गया अनजान। जप-तप की जहँ महके समिधा,भारत हुआ विभक्त । सत्य-अहिंसा जीवन सरगम,सरस दिवा…

  • #गीत

    परम पुनीता हिन्दी अपनी

    ✍️ #गीत पुण्य पंथ परमार्थ सनातन,सदा सुसज्जित देश । हिन्दी ही मंथन चिंतन में, करिए सदा निवेश । व्यास पराशर अंगिरादि भृगु,शतानंद सत चित्र, जहँ पुलस्त्य अगस्त्य सुचित हों,नारद विश्वामित्र । ऋषि जमदग्नि आशीष से है, पूर्ण शुद्ध परिवेश, पुण्य पंथ परमार्थ सनातन,सदा सुसज्जित देश । हिन्दी का विस्तार जहाँ से,भरत भूमि है धन्य । परम पुनीता हिन्दी भाषा,मानक मिले न अन्य । पूरब से ये सोन चिरैया, लेकर उगे दिनेश, पुण्य पंथ परमार्थ सनातन,सदा सुसज्जित देश । कर्म भूमि अपनी अवतारी, धर्म धरा सम व्योम, मनु जीवन ये प्रभु की रचना,हर्षित करती लोम । सत्य शील गीर्वाण अधर से, देती है संदेश, पुण्य पंथ परमार्थ सनातन,सदा सुसज्जित देश ।…

  • #गीत

    छंद – माधव मालती

    #गीत भूल कोई हो न दाता, राह तुम मुझको दिखाना । स्वप्न देखें ये नयन जो,ध्यान रख उसको सजाना । संग रहती चाहतें जब – डूब कर माँगे किनारा । शुष्क होते लोचनों में – पीर करुणा का सहारा । क्यों करें अपना-पराया,तुम शरण अपनी बुलाना । स्वप्न देखें ये नयन जो,ध्यान रख उसको सजाना । हो न गर्वित मान पाकर, साथ दे अपना न साया । कर रही है सत्य जग को, मुग्ध तन करती #अनाया। साधना के पथ न छूटे, मंत्र साधक तुम बनाना । स्वप्न देखें ये नयन जो,ध्यान रख उसको सजाना । बाड़ काँटों की लगाकर, अंध स्वारथ हिय न भाये । कंठ तक मद में…

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