-
“चीर झरे तन पर सदरी”
आधार छंद- लावणी #गीत स्नेह सिक्त भावों से भीगे,तन-मन अंतर देखें हैं । माँ की कृपा सिंधु से उभरे,मुक्ता अक्षर देखें हैं । *वाणी को जो तीर बनाते, धार बहुत इनमें होती । खिले वाटिका फूल जहाँ पर, आखर-आखर हों मोती । छुपे हुए सर्पो के दल-बल,दीन-धर्म को जो खोकर, घायल करते कृत्य कथन से,डसते विषधर देखेहैं। *कंपित रग-रग शीत लहर से, ठिठुरे हारे जन पथ पर । बजे दंत हैं दुंदुभि जैसे, रवि वर आओ तुम रथ पर। पतझर भी मधुमासी भाये,छँट जाये मोह पाश जो, मृत्यु आवरण धुंध कहर से,घिरते अक्सर देखें हैं। *हरित क्रांति से झूमें सरसों, अलसी निखरे खेत जहाँ । चले नहीं अब हवा पश्चिमी,…
-
चीर झरे तन पर सदरी
आधार छंद- लावणी #गीत स्नेह सिक्त भावों से भीगे,तन-मन अंतर देखें हैं । माँ की कृपा सिंधु से उभरे,मुक्ता अक्षर देखें हैं । *वाणी को जो तीर बनाते, धार बहुत इनमें होती । खिले वाटिका फूल जहाँ पर, आखर-आखर हों मोती । छुपे हुए सर्पो के दल-बल,दीन-धर्म को जो खोकर, घायल करते कृत्य कथन से,डसते विषधर देखेहैं। *कंपित रग-रग शीत लहर से, ठिठुरे हारे जन पथ पर । बजे दंत हैं दुंदुभि जैसे, रवि वर आओ तुम रथ पर। पतझर भी मधुमासी भाये,छँट जाये मोह पाश जो, मृत्यु आवरण धुंध कहर से,घिरते अक्सर देखें हैं। *हरित क्रांति से झूमें सरसों, अलसी निखरे खेत जहाँ । चले नहीं अब हवा पश्चिमी,…
-
सिलसिला रखना
सिलसिला रखना मुखर तुमसे रहूँ मैं मत गिला रखना। *अधर मुस्कान के यूँ सिलसिला रखना।* किया था दूर कब रक्खा सदा मन में। भरी यादें तुम्हारा प्यार जीवन में। रहे यूँ पास मेरी धड़कनों में तुम, तुम्हारी चाहतों के नीर नैनन मेंं । सदा बरखा बहारें जो कदम चूमें। मिले खुशियाँ हजारों यूँ खिला रखना । *अधर मुस्कान के यूँ सिलसिला रखना।* लगाओ प्रेम का बिरवा महकता है। खुशी आवेश में तन-मन उमड़ता है । वही राहें सुहाने दिन न बिसरेगें, लिए चिठिया पहन खाकी निकलता है। बजाती पाँव पायल दौड़ती चूम लेती जो, हृदय के पास तुम ही हो मिला रखना । *अधर मुस्कान के यूँ सिलसिला रखना ।*…
-
सिलसिला रखना
सिलसिला रखना मुखर तुमसे रहूँ मैं मत गिला रखना । *अधर मुस्कान के यूँ सिलसिला रखना ।* किया था दूर कब रक्खा सदा मन में। भरी यादें तुम्हारा प्यार जीवन में । रहे यूँ पास मेरी धड़कनों में तुम, तुम्हारी चाहतों के नीर नैनन मेंं सदा बरखा बहारें जो कदम चूमें । मिले खुशियाँ हजारों यूँ खिला रखना । *अधर मुस्कान के यूँ सिलसिला रखना ।* ——- लगाओ प्रेम का बिरवा महकता है। खुशी आवेश में तन-मन उमड़ता है । वही राहें सुहाने दिन न बिसरेगें, लिए चिठिया पहन खाकी निकलता है। बजाती पाँव पायल दौड़ती चूम लेती जो, हृदय के पास तुम ही हो मिला रखना । *अधर मुस्कान…
-
दुश्चिंताएँ
#गीत चिंतन हो पर दुश्चिंताएँ — कह दो उनसे पास न आए । कितनी गहरी अर्थ भरी हो, बातें जिन की खास सुहाए । छीना जिसने जग की खुशियाँ निशा घुली अरमानों वाली । दे न सकी जो नेह निमंत्रण, सूनी सेज रही जो खाली । लिखते गये पृष्ठ अतीत के, बैठी उन्मन रास न आए । यादें मीठी बातें उनकी सपने वे जो लगे किनारे । देकर दर्द न जाये रैना, उनको प्रतिपल रही सँवारे ढूँढ रही मंजिल अपनी जो नयी नज्म विश्वास जगाए । निष्ठुर जग की रीति निभाना धड़कन छीने चिंता घाती, साथ चले अनुकूल नहीं ये, जिसको कहते अपनी थाती ‘लता ‘हृदय से भेद मिटा दो-,…
-
“खोल झरोखे मावस चंदा”
#गीत दिवा सजे हवि महक उठी पिय,संग शिखा पुरवाई। झिलमिल तारे खुशियाँ बाँटे,महक उठी अँगनाई । खोल झरोखे मावस चंदा, तमस लिए तन बागी । धरा गगन की साँठ-गाँठ में, मन का होना रागी । बैठ पुलिन पर करे प्रतीक्षा, कैसे वह हरजाई । झिलमिल तारे खुशियाँ बाँटे,महक उठी अँगनाई । इत आये उत जाए छलिया, आकुल मन मतवाला । गिन-गिन कर जो रात गुजारे जपकर मुक्ता माला । बंद साँकली खोले पूनम, निशा लगी गदराई । झिलमिल तारे खुशियाँ बाँटे,महक उठी अँगनाई । नयन थके वा लगी विछावन, पलक पाँवड़े अभिनव । नेह #लता जो छूट न पाये, सुर सजा शर्वरी रव । दमकी देहरि घर आँगन की,कली गली…
-
“धुंध दुशाले ओढ़े अंशुक”
#गीत सजे घनेरे झीने पर्दे, मेघदूत नभ द्वार के । सहज गुलाबी बिछे गलीचे,उन्नत वृक्ष चिनार के । प्रकृति पिलाती हाला मद में,झूम उठा तन बावरा, बना आशियाँ ठहर गया मन,तनिक उठा कब हार के । सजे घनेरे झीने पर्दे, मेघदूत नभ द्वार के । —— पंख लगे घन हंस युगल से,खेल रहे आमोद में “धुंध दुशाले ओढ़े अंशुक”,सोती ज्यों नभ गोद में प्रीत गुहारे श्वेत श्याम में,हरषे मुकुलित नैन को, उलझे कुंचित केश लुभाए,स्वप्निल सैन बयार के । सजे घनेरे झीने पर्दे, मेघदूत नभ द्वार के । —— दूर छितिज से उगी लालिमा,सतरंगी परिधान में । लोल कपोलों पर छायी जब,ताम्र वेश अवसान में । धरा गगन से अनुबंधों…
-
“युग युग से अविरल पावन”
#गीत युग युग से अविरल पावन है,फूलों से महकी क्यारी । रही अनाधिकार शूलों की-घातक जिन पर दुश्वारी । उजडी़ बगिया फिर खिल जाए, एक नहीं शाखें अनगिन । कली कली ले यौवन गाती, मुस्कान भरे जो पलछिन । हम करें हिमायत काँटों की,क्या है अपनी लाचारी । रही अनाधिकार शूलों की- घातक जिन पर दुश्वारी । बिखरी परवश पात-पात पर तन-मन की सुधि बेमानी । छीन रहे अम्लान हँसी जो, अन सुलझे कृत नादानी । शांत हुए क्यों देख पुरोधा,जब आयी उनकी बारी । रही अनाधिकार शूलों की-घातक जिन पर दुश्वारी । खार मनुजता हुई धरा पर, भरती आहें अँगनाई । कल युग के काले पन्ने पर डरकर जीवै…
-
“युग युग से अविरल पावन”
#गीत युग युग से अविरल पावन है,फूलों से महकी क्यारी । रही अनाधिकार शूलों की-घातक उन पर दुश्वारी । उजडी़ बगिया फिर खिल जाए, एक नहीं शाखें अनगिन । कली कली ले यौवन गाती, मुस्कान भरे जो पलछिन । हम करें हिमायत काँटों की,क्या है अपनी लाचारी । रही अनाधिकार शूलों की- घातक जिन पर दुश्वारी । बिखरी परवश पात-पात पर तन-मन की सुधि बेमानी । छीन रहे अम्लान हँसी जो, अन सुलझे कृत नादानी । शांत हुए क्यों देख पुरोधा,जब आयी उनकी बारी । रही अनाधिकार शूलों की-घातक जिन पर दुश्वारी । खार मनुजता हुई धरा पर, भरती आहें अँगनाई । कल युग के काले पन्ने पर डरकर जीवै…
-
राधे राधे
#राधेराधे (राधा अष्टमी को समर्पित) अपना कौन पराया जग में,स्वामी है सिरमौर । मन जोगी क्या ? जाने राधे,जाना है किस ठौर । रूप धरे मायावी दुनिया, घूम रही दिन रैन । कैसी लौकिक लीला प्यारी, छीन रही मन चैन । सच है क्या तू बता राधिके, किसका है ये दौर। मन जोगी क्या ? जाने राधे, जाना है किस ठौर । राम नाम की सत्य पताका, अंतस भारी भेद। हरित बाँस पर झीनी चादर, मुक्ति जगत से खेद । करुणा कर हे कृष्णा, राधे,मुझे सिखा दे तौर । मन जोगी क्या ? जाने राधे, जाना है किस ठौर । सुनो नागरी हिय की बतियाँ, बड़ी ठगन जग रीति ।…