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“युग युग से अविरल पावन”
#गीत युग युग से अविरल पावन है,फूलों से महकी क्यारी । रही अनाधिकार शूलों की-घातक जिन पर दुश्वारी । उजडी़ बगिया फिर खिल जाए, एक नहीं शाखें अनगिन । कली कली ले यौवन गाती, मुस्कान भरे जो पलछिन । हम करें हिमायत काँटों की,क्या है अपनी लाचारी । रही अनाधिकार शूलों की- घातक जिन पर दुश्वारी । बिखरी परवश पात-पात पर तन-मन की सुधि बेमानी । छीन रहे अम्लान हँसी जो, अन सुलझे कृत नादानी । शांत हुए क्यों देख पुरोधा,जब आयी उनकी बारी । रही अनाधिकार शूलों की-घातक जिन पर दुश्वारी । खार मनुजता हुई धरा पर, भरती आहें अँगनाई । कल युग के काले पन्ने पर डरकर जीवै…
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“युग युग से अविरल पावन”
#गीत युग युग से अविरल पावन है,फूलों से महकी क्यारी । रही अनाधिकार शूलों की-घातक उन पर दुश्वारी । उजडी़ बगिया फिर खिल जाए, एक नहीं शाखें अनगिन । कली कली ले यौवन गाती, मुस्कान भरे जो पलछिन । हम करें हिमायत काँटों की,क्या है अपनी लाचारी । रही अनाधिकार शूलों की- घातक जिन पर दुश्वारी । बिखरी परवश पात-पात पर तन-मन की सुधि बेमानी । छीन रहे अम्लान हँसी जो, अन सुलझे कृत नादानी । शांत हुए क्यों देख पुरोधा,जब आयी उनकी बारी । रही अनाधिकार शूलों की-घातक जिन पर दुश्वारी । खार मनुजता हुई धरा पर, भरती आहें अँगनाई । कल युग के काले पन्ने पर डरकर जीवै…
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राधे राधे
#राधेराधे (राधा अष्टमी को समर्पित) अपना कौन पराया जग में,स्वामी है सिरमौर । मन जोगी क्या ? जाने राधे,जाना है किस ठौर । रूप धरे मायावी दुनिया, घूम रही दिन रैन । कैसी लौकिक लीला प्यारी, छीन रही मन चैन । सच है क्या तू बता राधिके, किसका है ये दौर। मन जोगी क्या ? जाने राधे, जाना है किस ठौर । राम नाम की सत्य पताका, अंतस भारी भेद। हरित बाँस पर झीनी चादर, मुक्ति जगत से खेद । करुणा कर हे कृष्णा, राधे,मुझे सिखा दे तौर । मन जोगी क्या ? जाने राधे, जाना है किस ठौर । सुनो नागरी हिय की बतियाँ, बड़ी ठगन जग रीति ।…
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राधे राधे
#राधेराधे (राधा अष्टमी को समर्पित) अपना कौन पराया जग में,स्वामी है सिरमौर । मन जोगी क्या ? जाने राधे,जाना है किस ठौर । रूप धरे मायावी दुनिया, घूम रही दिन रैन । कैसी लौकिक लीला प्यारी, छीन रही मन चैन । सच है क्या तू बता राधिके, किसका है ये दौर। मन जोगी क्या ? जाने राधे, जाना है किस ठौर । राम नाम की सत्य पताका, अंतस भारी भेद। हरित बाँस पर झीनी चादर, मुक्ति जगत से खेद । करुणा कर हे कृष्णा, राधे,मुझे सिखा दे तौर । मन जोगी क्या ? जाने राधे, जाना है किस ठौर । सुनो नागरी हिय की बतिया, बड़ी ठगन जग रीति ।…
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#गीत “कल्प रहे कल्पांत नहीं”
#गीत मधुरस भीनी बगिया अपनी, कल्प रहे कल्पांत नहीं । सुखदा संसृति अपनी प्रतिपल,करती जो दिग्भ्रांत नहीं । *** सरस लगे ये दिगदिगंत देखन वाले नैन अलग । लोभी मधुकर से यदि पूछें, गुनगुन करते बैन अलग । खोकर जीवै वही साधना , इसके कुछ उपरांत नहीं । सुखदा संसृति अपनी प्रतिपल,करती जो दिग्भ्रांत नहीं । *** नित्य रचे जो द्वार रँगोली, स्वागत में चौखट हो । कुम कुम हल्दी अक्षत ले हँसकर खुलता जो पट हो । तुलसी के बिरवा ! चुनमुन से,अँगना चहके शांत नहीं सुखदा संसृति अपनी प्रतिपल,करती जो दिग्भ्रांत नहीं । *** छंद रचे नव-नव विधान से, गीत नेक रचना हमको । छुपे दिव्य मन भाव…