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“मधुशाला जीवन की”
गीत – मधुर / मनोरम —————————– स्वार्थ रहित हो मोहक मधुरिम, मधुशाला जीवन की। किस्से सुख दुख अनगिन जिसमें, हम प्याला जीवन की । गुन गुन करती वीणा समरस, श्वासों में रस घोले । स्याम रंग में लिखे लेखनी कुंज-कुंज में डोले । हँस हँस मिलना है अनंत में,जप माला जीवन की । स्वार्थ रहित हो मोहक मधुरिम,मधुशाला जीवन की। पीड़ा मन की मुक्ता माणिक, शब्द शब्द रचवाए । जलना खपना इस दीर्घा में, मंचन जगत लुभाए । संचालक बनना केवल तो, मद हाला जीवन की । स्वार्थ रहित हो मोहक मधुरिम,मधुशाला जीवन की। आज नहीं तो कल सच होगा, कुछ हारे कुछ जीते । खींची रेखा मिली जुली पर,…
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#शिवा #शाम्भवी
#शिवा #शाम्भवी #करिए #अर्चन लहर लहर तट रहा झकोरे, घूम रहा तूफान निराला । घूम रहा तूफान —– फँसा बटोही नगर डगर तक बना हुआ हैवान निराला । बना हुआ हैवान—- विफर पड़ी आक्रोशित लहरें शिवा शाम्भवी करिए अर्चन । जनधन की भारी है चिंता, त्राहि मचाये ये परिवर्तन । भृकुटि तानकर खड़ी आपदा, लेना है संज्ञान निराला । लेना है संज्ञान ——- शक्ति साधना अपनी करनी अनहोनी को रोके जैसे । स्वर्ण अक्षरों में लिख जाता, सिद्ध कामना होती कैसे । विवश करे यह पथ दुरूह पर होगा अनुसंधान निराला । होगा अनुसंधान —— शिवताण्डव का भान नहीं, सुन लो भस्मासुर अपघाती। अरे आसुरी माया छलनी, देवभूमि क्या तेरी…
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केसर
#गीत पथरीले पर्णल पर पगली, परवश सोई प्राण पियारी । खिली कली ज्यों धूप सुहावन, हुई यौवना केसर क्यारी । पलके खोले तो बस देखे, लाज भरी बाँकी चितवन से । जीवट जड़वत रही जोगिनी, सहमे दृग केवल विपणन से । क्षुब्ध तापसी कुटिल काम से,झेल रही अनगिन दुश्वारी । खिली कली ज्यों धूप सुहावन,हुई यौवना केसर क्यारी । ————–हुई यौवना केसर क्यारी । कशमीरी परिचय दुनियावी , कौन हृदय की पीड़ा जाँचें । महक उठे निष्कंटक पथ पर, शुचित हृदय में सबको राँचे । ध्वस्त हुई किंजल्क कल्पना,कलझे क्यों कमनीय कुँआरी । खिली कली ज्यों धूप सुहावन,हुई यौवना केसर क्यारी । ————–हुई यौवना केसर क्यारी । बीते पल अध्याय…
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“शृंग पार से आया न्यासी”
—#गीत मेघदूत यायावर लेकर, खुशियों का संदेश। शृंग पार से आया न्यासी,सुखद लगे परिवेश । श्वेत-श्याम में उलझे नैना,कजरी के शृंगार । चहुँदिक डोले बादल छौने,क्या मधुबन क्या थार । दूब दूब पर मोती मानिक,भरे धरा के गोद, पाकर आँचल को हुलसाये, अम्बर से सित धार । उमड़ घुमड़ नभ से कजरारी, रही सँवारे केश । ————-सुखद लगे परिवेश ————- सावन-भादों की हरियाली,चंचल लगे अधीर । घन घोर घटा घननाद घने, चमके चपला तीर । तीज सावनी हर हर बम बम,शिव भक्तों के धाम, पर्व सुखद हो रक्षाबंधन, कवच हमारे वीर । नभ से आतुर चंदा झाँके,चैन नहीं लवलेश । ————-सुखद लगे परिवेश ————- सरस हो उठी बोझिल अवनी,जन-जन में…
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ढूँढें सुरमेदानी
#गीत सखी बावरी आई बरखा, खेत खेत अँखुआए। रिमझिम गाये फुलवारी घन,मुक्ता हार लुटाए। कटितट लेकर रस गागर को, कजरी गाये गुन गुन । बनी रागिनी सजल संगिनी पाँव पैजनी रुनझुन । नहा रही मतवाली बदरी,भीगेअम्बर बलखाए। रिमझिम गाये फुलवारी घन,मुक्ता हार लुटाए। साँझ हुई ज्यों चमके जुगनू, ढूँढे सुरमेदानी, । लाल हुई ज्यों अँखियाँ दिशि की मिले नहीं अभिमानी। दादुर झींगुर मीत बने सब,झंकृत ताल सुनाए। रिमझिम गाये फुलवारी घन,मुक्ता हार लुटाए। चंचल मन नभ से भूतल तक देख हुई छवि श्यामल । रात अषाढ़ी पूनम ढलके, विरहन के बन काजल । हुई बावरी तन-मन भीगे, पलकें रही बिछाए । रिमझिम गाये फुलवारी घन,मुक्ता हार लुटाए। डॉ .प्रेमलता त्रिपाठी
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बँधी डोर से डोर
बँधी डोर से डोर -गीत—————— कल आज हमारे हाथों में बँधी डोर से डोर हमारे —- हाथों में । जीवन नैया खेवन वाले । जड़वत हैं क्यों चेतन वाले । मना रहे त्योहार अगर तो मिली साँझ से भोर हमारे — हाथों में । सोच लिखूँ अफसाने नगमें । दौड़ रही श्वांसें रग-रग में । बेतार जुड़े हम सब देखें, धड़के हिय पुरजोर हमारे — हाथों में । ‘लता’ प्रेम में घुल कजरारी । राह मुझे देती उजियारी । पर्व ईद या जले होलिका, धूप – छाँव हर कोर हमारे हाथों में । ——–डॉ प्रेमलता त्रिपाठी
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गूँज कहीं निर्जन कानन से
#गीत मर्म रीते कटु भाव कब तक जहाँ वेदना सोती है । खार लिखे वह हरपल जीवन,जहाँ चेतना सोती है । साथ खड़े या चलने वाले जो केवल परछाई हो। रोती हँसती पीड़ा हरती, या अपनी तनहाई हो। गूँज कहीं निर्जन कानन से,लौट सदा आती ध्वनि सी, कर्मों की प्रतिध्वनि भी रोती, जहाँ सर्जना सोती है । निभा सके हम रिश्ते-नाते, सपन सँजोए नयन सुभग। लाख सताये दुनियादारी, अर्पण वाले भाव अलग । भूली बिसरी यादें मन को, ले जातीं गहराई में, चाहत अपनों की पाने को,जहाँ अर्चना सोती है । अनगिन मोती ‘लता’ बिछाए, राह अकेली प्रीतम बिन । उमड़ पड़े ये सरित लहर सी, रुके न पलकों में…
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‘गीत हुए महुआरी’
#गीत चैत चली पछुआ अँगनाई ,गीत हुए महुआरी । खड़ी दुपहरी मन भरमावे,पनघट घट पनिहारी । काँधे घड़िला शीश दुशाला, डगर मगर कटि बाला । राह निहारे प्यारी गइया, भामिनि हाथ निवाला । लाज लसे लोचनि रति हौले,झांझर पग झनकारी । चैत चली पछुआ अँगनाई, गीत हुए महुआरी—– रैन दिवस घड़ि पहर न जाने, यौवन भरता पानी । नाचत झुमका लोल कपोलन। रीझत भोर सुहानी । तरुवर छइयाँ ले अँगड़ाई, मुखरित प्राण पियारी चैत चली पछुआ अँगनाई,गीत हुए महुआरी —- बाबुल पाती भेज बुलावें सुधि ले महुआ महके । कनक मंजरी भर अमराई , कुहुक भरे तरु चहके । अगन लगावै वैशाख सखी,चलत पवन अगियारी । चैत चली पछुआ अँगनाई,गीत…
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“गीत हुए महुआरी”
#गीत चैत चली पछुआ अँगनाई,गीत हुए महुआरी । खड़ी दुपहरिया मन भरमावे,पनघट घट पनिहारी । काँधे घड़िला शीश दुशाला, डगर मगर कटि बाला । राह निहारे प्यारी गइया, भामिनि हाथ निवाला । लाज लसे लोचनि रति हौले,झांझर पग झनकारी । चैत चली पछुआ अँगनाई, गीत हुए महुआर—– रैन दिवस घड़ि पहर न जाने, यौवन भरता पानी । नाचत झुमका लोल कपोलन। रीझत भोर सुहानी । तरुवर छइयाँ ले अँगड़ाई, मुखरित प्राण पियारी चैत चली पछुआ अँगनाई,गीत हुए महुआरी —- बाबुल पाती भेज बुलावें सुधि ले महुआ महके । कनक मंजरी भर अमराई , कुहुक भरे तरु चहके । अगन लगावै वैशाख सखी,चलत पवन अगियारी । चैत चली पछुआ अँगनाई,गीत हुए…
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‘साज कहे आवाज हमें दो’
#गीत साज कहे आवाज हमें दो,चिंता उन्मन घिरती जाए । अनचाहे अभिनय में काया, पसोपेश में ढलती जाए । मौन करे जो अंतस पीड़ा, साँझ सकारे बढ़ी उलझनें । करे गमन सोचे किस पथ पर, चिंतन बनकर लगी उतरने । झंकृत कर दो तार हृदय के,औषधि सरिस उतरती जाए । साज कहे आवाज हमें दो, चिंता उन्मन घिरती जाए । चौखट पर जो खड़ी चुनौती, शनैः शनैः है पार लगाना । भ्रमित करे नित नयी भूमिका, धैर्य रखें हर फर्ज निभाना । सुर सरगम की विमल साधना,दुविधा मन की ढलतीजाए। साज कहे आवाज हमें दो, चिंता उन्मन घिरती जाए । इक जीवन की रथ यात्रा में, अनुदिन मिलते सत्य अनोखे…