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यह उजाला देखिए
गीतिका —— छंद – आधार छंद -आनंदवर्धक मापनी – 2122 2122 2122 212 समांत – आला, पदांत देखिए सार जीवन आज देते, जो हवाला देखिए । कंठ तक मद में भरे है, हाथ प्याला देखिए । अर्थ जीवन दे रहे रख, अर्थ की ही भावना, भूख जिह्वा दंत छीने, मुख निवाला देखिए । है तड़पती प्यास लेकर,शून्य में देखे सदा, भाग्य को है कोसती हत,है कराला देखिए । मार मन जीते रहे जो,कौन उनको पूछता, हर कदम उठतें वहीं है,नित सवाला देखिए । है गरीबी भूख से हर,पल बिखरती कामना, देश माँगे आज कैसा, यह उजाला देखिए। डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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मेघ मनुहार
गीतिका सांवरे मनुहार करती अब चले आओ । घन घनाघन नाद लेकर बूँद बन गाओ । मीत मेरा मान रखना हे सलोने घन, क्यों बहुत तरसा रहे हो मेह आ जाओ । तोड़ सीमा आज आतप क्यों बढ़ाते तन । कंठगत हैं प्राण प्यासे अब तरस खाओ । हम निहारें बाट तेरी प्यास है बढ़ती, सावनी रिमझिम फुहारें प्राण सरसाओ । सूखते अब खेत जन धन है किसानी ठप, शस्य श्यामल कर धरा पर प्रीति महकाओ । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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मील के पत्थर
आधार छंद -रजनी समान्त – आतीं पदान्त – हैं मापनी -2122 2122 2122 2 ,,,,, गीतिका दूर तक फैली मुझे राहें बुलाती हैं । मील के पत्थर बनों मुझको सिखातीं हैं । शांत चिंतन साधना देती सहारा जो, चेतना की ज्योति वे अंतस जगातीं हैं नित्य यादों को बुलाकर पास लातीं जो, मद भरी मुस्कान में मुझको डुबातीं हैं । बस गये हो तुम हृदय में शांत उपवन से, बैठ कर तनहाइयाँ भी गुनगुनातीं हैं । प्रेम मन भाया अकेला पन सरस चिंतन, शांत रजनी स्वप्न आँखों में सजातीं हैं । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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नयी राह चलना
………… आधार छंद- वाचिक भुजंगप्रयात मापनी – 122 122 122 122 लगावली – लगागा लगागा लगागा लगागा समान्त- अलना, अपदांत नयी रोशनी में नयी राह चलना । दिवा स्वप्न से तुम सदा ही सँभलना । चलो साहसी बन सफलता मिलेगी, खुशी को अहं में नहीं तुम बदलना । कहीं मौन मजबूरियाँ बन न जाये, नहीं सत्य के पथ कभी तुम फिसलना । मिले रात काँटों भरी सेज बनकर, न भयभीत होना नहीं तुम मचलना । घड़ी धैर्य की भी न छोटी बड़ी हो, इरादे रहें नेक मन से न ढलना । प्रकृति संपदा जो मिली है सुहानी, उसे स्वार्थ अपने नहीं तुम मसलना । बनो प्रेम दीपक तमस को मिटा…
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रात में
आधारछंद – वाचिक स्रग्विणी मापनी – 212, 212 ,212 ,212 समांत – अरी , पदांत – रात में गीतिका —- रागिनी जो सजी साँवरी रात मेंं । बन सँवर मैं गयी बावरी रात में । जो खुले थे झरोखे बयारें चलीं, बज उठी पैजनी पाँव री रात में संग गाती बहारें उड़ा मन कहीं, रोक पाये न कोई दाँव री रात में । साजना बिन तुम्हारे अधूरी रही, प्राण जोगन फिरे गाँव री रात में प्रेम यादें सतातीं निशा बीतती, देख दुल्हन बनी काँवरी रात में । डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी
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राह दिखाओ
गीतिका — आधार छंद- बिहारी मापनी- गागाल लगागाल लगागाल लगागा 221 1221 1221 122 या, 2211 2211 2211 22 समान्त- आओ, अपदांत शुभ प्रात नमन ईश करो ध्यान लगाओ । खिल गात उठे योग सधे स्वस्थ बनाओ । संधान करो नित्य पहुँच ज्ञान शिखर तक आवाज युवा क्रान्ति बनों देश जगाओ । अभियान नवल वेग भरो दर्प मिटा कर, बन सूर्य किरण संग चलो राह दिखाओ । संदेश सदा सत्य अटल मार्ग चुनो तुम, हो व्योम सदृश उच्च सपन नैन सजाओ । क्यों दोष सदा भाग्य कहें कर्म जगत में, मत व्यर्थ करो प्राण यतन मीत लजाओ । हठ द्वंद सदा दूर करो मर्म समझ कर, विश्वास सरस प्रेम भरा…
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बादल
गीतिका —- आधार छंद — वाचिक जतरगा मापनी — 12122 12122 समान्त – आरपदांत – बादल बिखर रही जो निखार बादल । उलझ गयी जो सँवार बादल । नयन निहारे पलक बिछाये । मयंक पहले उतार बादल । न चाँदनी का पता कहीं है, न चैन आये करार बादल । विहाग गाता चला पथिक जो, विहग बसेरा उजार बादल । लगे अमावस घिरा सकल हो, बिखेर तारे हजार बादल । सप्रेम गलियाँ महक उठेंगी, निकाल मन का गुबार बादल । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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मेघ मनुहार
गीतिका आधार छंद — वाचिक जतरगा मापनी — 12122 12122 समान्त – आरपदांत – बादल सुनो धरा की पुकार बादल । किसान का हित विचार बादल । बुझा सके प्यास जो नहीं अब, हृदय किसी का उदार बादल । छिपी न तुमसे व्यथा जगत की, विकल भरा मन गुबार बादल । धरा सजेगी विकास होगा, भरो सुखद तुम फुहार बादल । महक उठेगी प्रफुल्ल क्यारी, तुम्हीं बुलाते बयार बादल । न आँसुओं की लड़ी सुहाती, दुखी मनुजता सँवार बादल । प्रलय न आए उदास मन है, मधुर बजा दो सितार बादल सुमन सरोवर सुहास देना, सप्रेम बरखा बहार बादल । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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जीवन
गीतिका आधारछंद – राधेश्यामी16,16 पर यति समांत – आना, पदांत – है । जीवन है काँटों का झुरमुट, क्या उलझ हमें रह जाना है। पथ के सारे काँटे चुनचुन, उसको अब सुगम बनाना है। कैसी मन की कटुता भाई, क्यों मन भेद धरें आपस में । इक दिन जाना ही है सबको,अपनों का मिला खजाना है । है सात सुरों का सरगम जो,संगम ये सुर लय तालों का । तार हृदय के जोड़ रहे हम, कविता तो एक बहाना है । छ: ऋतुओं का अपना वैभव,सरस बनाते जन जीवन को। रखकर वाणी सरस कोकिला, भावों कोे नित्य सजाना है। उपवन मे जब सुमन खिलेंगे,मन मयूर लेगा अँगड़ाई। घन देख पपीहा…
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जीवन
गीतिका आधारछंद – राधेश्यामी16,16 पर यति समांत – आना, पदांत – है । जीवन है काँटों का झुरमुट, क्या उलझ हमें रह जाना है। पथ के सारे काँटे चुनचुन, उसको अब सुगम बनाना है। कैसी मन की कटुता भाई, क्यों मन भेद धरें आपस में । इक दिन जाना ही है सबको,अपनों का मिला खजाना है । है सात सुरों का सरगम जो,संगम ये सुर लय तालों का । तार हृदय के जोड़ रहे हम, कविता तो एक बहाना है । छ: ऋतुओं का अपना वैभव,सरस बनाते जन जीवन को। रखकर वाणी सरस कोकिला, भावों कोे नित्य सजाना है। उपवन में जब सुमन खिलेंगे,मन मयूर लेगा अँगड़ाई। घन देख पपीहा…