• गीतिका

    गांवों में

    आधार छंद लावणी गीतिका —– बसे जहाँ के पूर्वज अपने,खेती-बारी गांवों में । शहरी जीवन भोगी जीते,बिन बीमारी गांवों में । रूप बदलते जोगी देखे,करें दिखावा शहरी हैं, स्वार्थ रहित कर्मठ साधक जन,दिखते भारी गाँवों में । ज्ञान क्षेत्र में सबसे आगे,पुण्य पंथ उच्च विचारी, विद्या धन से नहीं रहेगी,अब लाचारी गांवों में । वस्त्र विलीन स्वदेशी सुंदर,छद्म कृत्य बढ़ा विदेशी, है बची हुई मर्यादा अपनी,नहीं उघारी गांवों में। नित नित चर्चा नयी चुनावी,नहीं शांत मन अपना है, जगी चेतना बढ़े विवेकी,अब की बारी गांवों में । डॉ प्रेमलता त्रिपाठी

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    प्रेम की सौगात

    आधार छंद – ‘ आनंदवर्धक छंद ‘ मापनी – 2122 2122 212 समांत – ‘ आत ‘ , पदांत – ‘ है ‘ . ***************************** गीतिका:- हो उठी जागृत सुहानी रात है। मौन तारे भी करें जब बात है । टिमटिमाते जुगनुओं की पंक्तियां, है अमा की रात झंझावात है । दर्द रिश्तों में जहाँ मिलता रहा, प्रीति खाती नित वहीं तब मात है। पास आकर भी नहीं मंजिल मिली, यह समय का जानिए अप घात है । सत्य की राहें अडिग हैं मानिए , बात इतनी जो सभी को ज्ञात है । है प्रतीक्षा की घड़ी नाजुक बड़ी, रात्रि का अवसान देता प्रात है । गुनगुनाये शून्य भी यह…

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    अहसास है होली

    गीतिका —- सजाता फागुन का यह मास है होली । जगाये मधुर मिलन अहसास है होली । सारा रा रा रा ,रा जोगीड़ा झूमें, रंग रंगीला रास विलास है होली । भौंरे डोले सुध बुध भूले मतवाले, कली कली पर मुखर नव हास है होली । डूब रहा तन मन होकर सतरंगी , बिखेरे वासंती उल्लास है होली हो चढ़ा भंग सब अंग तरंगित जैसे, प्रेम सबै बनाये मन दास है होली । डॉ प्रेमलता त्रिपाठी

  • गीतिका

    शुभकामनाएँ

    मनीषी मंच ——- गीतिका —— झूम उठा मन यौवन छाया । देख सखा मधुमास सुहाया । कली गली शोभित अँगनाई, मीत रसाल अजब बौराया । कंचन सर्षप पीत वधूटी, खनके नूपुर मन भरमाया । लोचन खंजन मनस विहंगा, छलके मधुरस फागुन आया । रंग भरे नभ भूतल शोभा, बन रसिया मनमीत लुभाया । पहरू सीमा साध रहें हैं, बन रक्षक संकल्प उठाया । देश प्रेम का चोला पहने, रंग वसंती है रंँगवाया । डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

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    फागुन आया

    जगती मन में इक आस नयी,पर्वों की कथा पुरानी है । जो देश काल को जोड़ चले,वह नीति प्रथा अपनानी है। 1 फाग उड़ाता फागुन आया,जब हरे भरे खलिहानों से, धरा करे शृंगार लहर कर,चूनर पहिने फिर धानी है । 2 कोयल कूके अमराई में,बौरे रसाल मदमस्त करे, टेसू पलाश भी रंग भरे, फूलों ने चादर तानी है । 3 जब मन मधुकर खोले पाँखें,पात पात सरसाये पुलकित, सुख सपनों में डूबे असीम,हम राह नहीं अनजानी है ।4 शाश्वत कीर्ति भरत भूमि की,अक्षुण्ण रहे जीवन दर्शन, संस्कृति अपनी श्रेष्ठ सदा ही,नित सत्य कहे कवि बानी है ।5 बोध आत्मबल सैन्य शक्ति से,आन्दोलित अपना जन मानस, राजनीति की चाल त्रासदी,क्यों बढा़…

  • गीतिका

    आन के लिए

    आधार छंद- वाचिक चामर मापनी – गालगाल गालगाल गालगाल गालगा 2121, 2121, 2121,212 समांत – आन, पदांत- के लिए गीतिका —– वार दें सु स्वप्न प्राण देश आन के लिए । गर्व है हमें अनंत शौर्यवान के लिए । वंदनीय हैं शहीद मातृभूमि के सदा, धन्य ये शहादतें धरा महान के लिए । जागिए सुजान ये धरा पुकारती हमें । राज नीति की बिसात है न मान के लिए । हेकड़ी जमा रहे विकार युक्त लोग जो, स्वार्थ में जुटे वही न मर्म ज्ञान के लिए। टूटता समाज है कुरीतियाँ फसाद से , मीत एक हों सभी बढ़े निदान के लिए । बूँद बूंद रक्त में प्रवाह देश प्रेम हो…

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    रंगों की विविधा है जीवन

    आधार छंद – लावणी मात्रा = 30 – 16,14 पर यति समांत – आने पदांत – से गीतिका —— रंगों की विविधा है जीवन, सजते ये अपनाने से । छाप छोड़ता कर्म हमारा, अपने रंग जमाने से । जहाँ तहाँ बिखरीं हैं खुशियाँ,ढूँढ उन्हें फिर लाना है, जब तब मौके मिलते हमको,मिलकर कदम बढ़ाने से । पलक झपकते बीत रहा पल,आओ उन्हें सँवारे हम, कम क्यों आँके क्षमताओं को,,बात बने समझाने से । दूर विजन कानन भी बोले,चटक चिरैया चुन मुन सी, सूरज अपने पाहुन लगते, सपने नैन जगाने से । जीवन एक खिलौना जिसमें,चाभी भरना प्रतिपल है, समता लायें सुख दुख में हम,हँसकर उसे बिताने से । रात सितारे…

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    तम की शिलाएँ

    गीतिका — गहन तम की शिलाएँ तोड़कर मुझको गिरानी है । हमेशा रश्मियाँ आयें वही तो भोर लानी है । किरण के रंग बादल पर उकेरूँगी सदा अभिनव खिलेंगे फूल राहों में लिए नूतन कहानी है । मिटेगें खार क्रंदन भी,समय की अटपटी चालें भले हो दूर मंजिल भी नयी राहें बनानी है । दिया तल में अँधेरा हो सदा यह मान बैठे हम, कथा आँसू कहेंगे यह कहानी बेजुबानी है। विवशता में जिया करते छलें क्यों श्वांस अपनों की, रुलाया है बहुत तुमने दुखों की अब रवानी है । ऋचाएँ प्रेम की कब तक रहेंगी सुप्त तन मन में, उजाले गीत बनते जो वही कविता सुनानी है । डॉ.…

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    शहीदों को नमन

    छंद – आल्ह [ गीतिका ] मात्रा = 31,16,15पर यति समांत – आल – अपदांत शहीदों को नमन शांत नहीं अब शोणित होगा,संग हमारे होगा काल । छलनी करना सीना अरि का,ध्वस्त मनोबल हो हर हाल । शब्द शब्द कवि चंद सरीखे,जोश होश है लेना खींच, शत्रु विनाश संकल्प हमारा,अरि का करना क्रिया कपाल । आत्मघात का खेल खेलते,छीन रहे रातों की नींद, नींद न अरि को लेने देंगे,जाग चुके हैं अपने लाल । भूल नहीं सकता है अपना,देश सपूतों के बलिदान, शरण सपोलों को देते जो,नहीं बनेंगे उनकी ढाल । व्यर्थ न जाने देंगे हम सब,कमर तोड़ना होगा पाक, क्षम्य नहीं अपराधी हैं जो,शर्मनाक यह उनकी चाल । माँ…

  • गीतिका

    गूँजती पद चाप

    गीतिका —- गूँजती पद चाप जो उर में समाते तुम रहे । राग की रोली बिखेरे पथ दिखाते तुम रहे । शून्य अधरों पर हया मुस्कान बन कर छा गयी, प्यास जन्मों के विकल मन की बुझाते तुम रहे। कंटकों में राह तुमने ही बनायी दूर तक, फूल बनकर श्वांस में यों पास आते तुम रहे । लौट आओ हर खुशी तुमसे जुड़ी हैआस भी, धूप की पहली किरण बनकर सजाते तुम रहे । हो हृदय नायक इशा विश्वास भी तुमसे सभी , स्वप्न सारे पूर्ण हों राहें बनाते तुम रहे। जल रहा मन द्वेष से हर पल विरोधी सामना, मूल्य जीवन का सतत यों ही सिखाते तुम रहे ।…

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