• गीतिका

    वन्देमातरम्

    !!!वंदेमातरम् वंदेमातरम् वंदेमातरम् !!! सत्य सनातन अपनत्व भरा, प्यारा वंदे मातरम् । भूलें मत सदियों से अपना, नारा वंदे मातरम् ।। किरणों के रथ बैठ दिवाकर, प्राची से संदेश दे। लिए सबेरा कर्मठ बढ़ता, पारा वंदेमातरम् ।। सजी धरा जगमग जैसे, मुखर रागिनी गा रही । खोल पलक को सरस निहारे, तारा वंदे मातरम् ।। जय जवान से जय किसान तक, भाव-भरे अनुगूँज से। कदम-कदम पर ओज-बढ़ाए, न्यारा वंदे मातरम् ।। बिगुलबजा जो गलियारों में, राष्ट्रगीत हो पूर्ण अब, नहींं सियासी दाँवों से जो, हारा वंदे मातरम् ।। पहने वासंती चोला ज्यों, अखंड भूमि भारत ये। एक राष्ट्र हो तोड़े बंधन, कारा वंदे मातरम् ।। प्रेम-मंत्र विश्वास-अडिग यह, सत्साहस अधिकार…

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    #दीपोत्सव विशेष ….

    दीपोत्सव #विशेष ———————- जन्मभूमि भारत यह जिससे, अपना मधुमय नाता है। पर्वों का यह देश निराला, गीत मिलन के गाता है।। जहाँ अमावस को पूनम सम, जगमग दीप जलाते हम। लिखते हैं निस्वार्थ भाव से, निज सत्य बहीखाता है।। ढुल-मुल नीति वही ढोता है, भार रूप है जीवन को। अपनी जड़ता के कारण, व्यर्थ रीति दुहराता है।। सदा संतुलन संदेश रहा, स्वयं सँवारे नियति नियम। रवि ज्यों देता सजग चेतना, नाते मौन निभाता है।। भूख गरीबी या मंदी हो, चिंतन से बदलेगें हम। दीप ज्योति से विकट अँधेरा, उसे मिटाना आता है।। नयी योजना उम्मीदों से, भारत सुदृढ़ बनाने को। पहल सदा हम स्वयं करेंगे, यही वक्त सिखलाता है।। दीप-दिवाली…

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    “दुहराता इतिहास उसी को”

    *सजल* समय-समय पर बरखा सावन,और समय से आता पतझड़। नियति बांँचती भाग्य हमारे,सुख-दुख आते हैं उमड़-घुमड़ ।। चूनर दाग न धो पाएगी, हृदय हीन हो रिश्ता-नाता। प्रीति लगन यदि सच है बढ़ती, भले बनाते लोग बतंगड़।। लोक रीति से परे न कोई, नयी-पुरानी सीख समझ लें। सत्य-सनातन बिन कड़ियांँ सब, बिना शीश के लगतीं धड़।। भूले बिसरे गीत हमारे, नयी चेतना को समझाएं। दुहराता इतिहास उसी को, धाक उसी की जो है धाकड़।। महके फागुन में अमराई, कोकिल-काग करें हैं कलरव। मीठी-मीठी वाणी मनहर, झूलें हम डाली पकड़-पकड़।। बादल छौने नभ पर धाएं, काले-भूरे रार मचाएं। गरज उठी घनघोर नाद से, चपला-चमकी नभपर तड़-तड़।। सांँझ सुरमई निशा सुहागन, चातक-नयन हुए…

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    “सजल नयन के कोर”

    सजल नयन के कोर…….. करो न आहत हृदय हमारा, कदम बढ़ाया अभी-अभी । वही भरोसा बना रहेगा, कलम उठाया अभी-अभी ।। हुए नहीं जो खुद ही अपने, रिश्ते नाते नये-नये । उठीं सदाएं जगत हितों की, हृदय जगाया अभी-अभी ।। भले शिखर तक पहुँच गए हम, तृषा हवस की डुबा रही । क्या खो चुके हम ये न सोचा, विवश बनाया अभी-अभी ।। बढ़ा हौसले वही गिराते, परख सके हैं कुटिल कहाँ । रही सतत दुविधा लाचारी, हृदय लजाया अभी-अभी ।। दाँव सियासी खेलें देखा, चौपड़ बाजी लगी यहाँ । सजल”नयन के कोर बताते, कि क्या गँवाया अभी-अभी।। उठा शीश है सदा जगत में, चुनी सदा ही उचित राहें ।…

  • गीतिका

    अर्चना में खिली पाँखुरी-पाँखुरी ।

    #गीत कोर भीगे नयन भर रही आँजुरी……… राधिका सुन रही श्याम की बाँसुरी। अर्चना में खिली पाँखुरी-पाँखुरी । गाँव गोकुल गली गागरी भूलकर, साधिका वन फिरे पथ बिछे शूलपर। श्याम रंग में रँगी चूनरी श्यामला, प्रीत रुनझुन बजे बावरी-माधुरी । राधिका सुन रही श्याम की बाँसुरी ——- अर्चना में खिली पाँखुरी-पाँखुरी । पीर मन की भुला दो सखे श्याम जी, पा सकूँ मान धन प्रेम श्री धाम जी। साथ तेरा मिले बंदगी ये रहे, कोर भीगे नयन भर रही आँजुरी । राधिका सुन रही श्याम की बाँसुरी ——— अर्चना में खिली पाँखुरी-पाँखुरी । मान ले तू अगर प्रेम मीरा बनूँ,। जग हँसेगा हँसे मीत धीरा बनूँ। चैन मन की हरे…

  • #गीत,  गीतिका

    ‘अनजान पथिक को ‘

    गीत साँझ नवेली निशा सुहागन,मन विरही का भरमाया । साँसों का अनुपम बंधन,जन्म-मरण तक ये काया । पंख लगे घन लौट रहे ज्यों, थके दिवस के हों प्यारे। चंद्र कौमुदी रजनी नभ-तल, शून्य भरे नभ के तारे। विरह-प्रीति अनजान पथिक को,कैसे हिय में ठहराया। साँसों का अनुपम बंधन, जन्म-मरण तक ये काया । घोल रही हैं चकमक लाली, स्वतःसाँवरी सँवरी सी । चँवर डुलाए पवन वेग से फाग उड़ाती बदरी सी । रंग सभी,बेरंग न जीवन,जिसको कहते हैं माया । साँसों का अनुपम बंधन,जन्म-मरण तक ये काया । भाग्य बदलते कर्म हमारे चले साथ दो पग मेरे । भटक रहे जो दुविधाओं में, नियति नटी जब पग फेरे। राह मिलेगी…

  • गीतिका

    “जय भारत”

    “जय भारत” —– रहे झूमता ये तिरंगा हमारा। गगन चूमता ये चमकता सितारा।। सदा मान है ये शान हमारी । दिलों में विराजे आन हमारी । आजाद भारत की ये निशानी, अमर ये रहे वतन का सहारा । रहे झूमता ये तिरंगा हमारा——- छिपी जहाँ शहीदों की शहादत । हिंद की दौलत अपनी अमानत । चंचल हवायें सदा गीत गायें, विश्व पटल पर सजे ये नजारा रहे झूमता ये तिरंगा हमारा——- लिए वीर हाथों फड़कती भुजाएँ। उमगती धड़कन गाती ऋचाएँ । अनुगूँज लेकर जयहिंद भारत, कदम से कदम ; चमन का दुलारा । रहे झूमता ये तिरंगा हमारा——- डॉ0 प्रेमलता त्रिपाठी

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    ‘लौंग सुपारी के बीड़ा लगा के’

    गीत —– रंग बसंती बिखेरे संँवरिया —- धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया । फगुनी बयरिया सजन मन भावै। सुध-बुध छीनै ये जिया तड़पावै । सतरंगी आभा किरण बगरा के, छल-छल छलके है काँधे गगरिया, धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया ——-। अँगना में बोलै सुगन हरजाई । चँवर डुलाती जो गयी तरुणाई । लौंग सुपारी के बीड़ा लगा के, यौवन की आई खड़ी दुपहरिया धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया ——–। दर्पण देखत शृंगार हुलसाये । रंग पिया मोहे चटक मनभाये । कटि बलखावे बावरो पग नूपुर, चैन कहाँ पावै अनहद गुजरिया । धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया —–। ———-डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

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    “कल्प रहे कल्पांत नहीं”

    #गीत मधुरस भीनी बगिया अपनी,कल्प रहे कल्पांत नहीं । सुखदा संसृति अपनी प्रतिपल,करती जो दिग्भ्रांत नहीं । *** सरस लगे ये दिगदिगंत देखन वाले नैन अलग । लोभी मधुकर से यदि पूछें, गुनगुन करते बैन अलग । खोकर जीवै वही साधना , इसके कुछ उपरांत नहीं । सुखदा संसृति अपनी प्रतिपल,करती जो दिग्भ्रांत नहीं । *** नित्य रचे जो द्वार रँगोली, स्वागत में चौखट हो । कुम कुम हल्दी अक्षत ले हँसकर खुलता जो पट हो । तुलसी के बिरवा ! चुनमुन से,अँगना चहके शांत नहीं सुखदा संसृति अपनी प्रतिपल,करती जो दिग्भ्रांत नहीं । *** छंद रचे नव-नव विधान से, गीत नेक रचना हमको । छुपे दिव्य मन भाव सरसता,…

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    “कल्प रहे कल्पांत नहीं”

    #गीत मधुरस भीनी बगिया ये, कल्प रहे कल्पांत नहीं । सुखदा संसृति अपनी प्रतिपल,करती जो दिग्भ्रांत नहीं । *** सरस लगे ये दिगदिगंत देखन वाले नैन अलग । लोभी मधुकर से यदि पूछें, गुनगुन करते बैन अलग । खोकर जीवै वही साधना , इसके कुछ उपरांत नहीं । सुखदा संसृति अपनी प्रतिपल,करती जो दिग्भ्रांत नहीं । *** नित्य रचे जो द्वार रँगोली, स्वागत में चौखट हो । कुम कुम हल्दी अक्षत ले हँसकर खुलता जो पट हो । तुलसी के बिरवा ! चुनमुन से,अँगना चहके शांत नहीं सुखदा संसृति अपनी प्रतिपल,करती जो दिग्भ्रांत नहीं । *** छंद रचे नव-नव विधान से, गीत नेक रचना हमको । छुपे दिव्य मन भाव…

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