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“सुंदर सुखद बसंत”
#गीत हुई निनादित मौन अर्चना, हर्षित मन उद्गार । वनबाग उपवन ताल सगरे, हमने लिए उधार । पृष्ठ-पृष्ठ पर अंकित कथनी, करते हम जीवंत । आती-जाती ऋतुएँ कहतीं, सुंदर सुखद बसंत । एकाकी मुस्कान भरे मन,आखर लगे बयार। वनबाग उपवन ताल सगरे,हमने लिए उधार। विरह-मिलन की त्रिगुण भाव की, उद्यम करते काव्य । सरल नहीं है इन्हें साधना, श्रम करता संभाव्य । साक्षी हैं वाणी के साधक ,कलम करे अभिसार । वनबाग उपवन ताल सगरे, हमने लिए उधार। श्रद्धानत करते चरित्र जो, कलम लिखे जयबोल । लिख जाते अध्याय जहाँ, घर आँगन भूगोल । मन की गागर सागर बनकर,’लता’ बढ़े सितधार । वनबाग उपवन ताल सगरे, हमने लिए उधार। —————-डॉ.प्रेमलता…
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‘अनजान पथिक को ‘
गीत साँझ नवेली निशा सुहागन,मन विरही का भरमाया । साँसों का अनुपम बंधन,जन्म-मरण तक ये काया । पंख लगे घन लौट रहे ज्यों, थके दिवस के हों प्यारे। चंद्र कौमुदी रजनी नभ-तल, शून्य भरे नभ के तारे। विरह-प्रीति अनजान पथिक को,कैसे हिय में ठहराया। साँसों का अनुपम बंधन, जन्म-मरण तक ये काया । घोल रही हैं चकमक लाली, स्वतःसाँवरी सँवरी सी । चँवर डुलाए पवन वेग से फाग उड़ाती बदरी सी । रंग सभी,बेरंग न जीवन,जिसको कहते हैं माया । साँसों का अनुपम बंधन,जन्म-मरण तक ये काया । भाग्य बदलते कर्म हमारे चले साथ दो पग मेरे । भटक रहे जो दुविधाओं में, नियति नटी जब पग फेरे। राह मिलेगी…
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‘अनजान पथिक को’
गीत साँझ नवेली निशा सुहागन,मन विरही का भरमाया । साँसों का अनुपम बंधन,जन्म-मरण तक ये काया । पंख लगे घन लौट रहे ज्यों, थके दिवस के हों प्यारे। चंद्र कौमुदी रजनी नभ-तल, शून्य भरे नभ के तारे। विरह-प्रीति अनजान पथिक को,कैसे हिय में ठहराया। साँसों का अनुपम बंधन, जन्म-मरण तक ये काया । घोल रही हैं चकमक लाली, स्वतःसाँवरी सँवरी सी । चँवर डुलाए पवन वेग से फाग उड़ाती बदरी सी । रंग सभी,बेरंग न जीवन,जिसको कहते हैं माया । साँसों का अनुपम बंधन,जन्म-मरण तक ये काया । भाग्य बदलते कर्म हमारे चले साथ दो पग मेरे । भटक रहे जो दुविधाओं में, नियति नटी जब पग फेरे। राह मिलेगी…
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“जीवन तो अनमोल है”
#गीत साँझ-साँझ में ढल गई,शून्य सजी बारात । जीवन तो अनमोल है,प्रतिदिन हो सौगात ।। भूले बिसरे वक्त की, परछांई भी मौन, खींची रेखा हाथ पर,देख सकेगा कौन।। भाग्य विधाता हैंं स्वयं,समझे मन नादान, हठधर्मी से आपदा,नित करती उत्पात । जीवन तो अनमोल है,प्रतिदिन हो सौगात ।। खुशी सहज संभाव्य हो,मन से मन का मेल । टूटे न विश्वास कहीं, मत खेलें अठखेल ।। रागद्वेष से पथ जहाँ, करते दीन मलीन, नागफनी के बाड़़ को,लगा करें क्यों घात । जीवन तो अनमोल है,प्रतिदिन हो सौगात ।। ऋतु बसंत है द्वार पर,कर लें हम शृंगार । कुसुमाकर के साथ ही, महके घर संसार ।। विनत प्रीत मनुहार से, उपासना हो पूर्ण,…
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वसंतोत्सव
#गीत हुई निनादित मौन अर्चना, हर्षित मन उद्गार । वनबाग उपवन ताल सगरे, हमने लिए उधार । पृष्ठ-पृष्ठ पर अंकित कथनी, करते हम जीवंत । आती-जाती ऋतुएँ कहतीं, सुंदर सुखद बसंत । एकाकी मुस्कान भरे मन,आखर लगे बयार। वनबाग उपवन ताल सगरे,हमने लिए उधार। विरह-मिलन की त्रिगुण भाव की, उद्यम करते काव्य । सरल नहीं है इन्हें साधना, श्रम करता संभाव्य । साक्षी हैं वाणी के साधक,कलम करे अभिसार । वनबाग उपवन ताल सगरे, हमने लिए उधार। श्रद्धानत करते चरित्र जो, कलम लिखे जयबोल । लिख जाते अध्याय जहाँ, घर आँगन भूगोल । मन की गागर सागर बनकर,’लता’बढ़े अविकार । वनबाग उपवन ताल सगरे, हमने लिए उधार। —————————डॉ.प्रेमलता त्रिपाठी
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वसंतोत्सव (14फरवरी)
#गीत हुई निनादित मौन अर्चना, हर्षित मन उद्गार । वनबाग उपवन ताल सगरे, हमने लिए उधार । पृष्ठ-पृष्ठ पर अंकित कथनी, करते हम जीवंत । आती-जाती ऋतुएँ कहतीं, सुंदर सुखद बसंत । एकाकी मुस्कान भरे मन,आखर लगे बयार। वनबाग उपवन ताल सगरे,हमने लिए उधार। विरह-मिलन की त्रिगुण भाव की, उद्यम करते काव्य । सरल नहीं है इन्हें साधना, श्रम करता संभाव्य । साक्षी हैं वाणी के साधक ,कलम करे अभिसार । वनबाग उपवन ताल सगरे, हमने लिए उधार। श्रद्धानत करते चरित्र जो, कलम लिखे जयबोल । लिख जाते अध्याय जहाँ, घर आँगन भूगोल । मन की गागर सागर बनकर,’लता’ बढ़े सितधार । वनबाग उपवन ताल सगरे, हमने लिए उधार। —————————डॉ.प्रेमलता…
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अभिनंदन “श्रीराम” जी
#गीत हे! अनुरागी श्री राम पिया,मैं झुकि-झुकि करूँ नमन । नैना भीगे अविराम पिया,मैं झुकि-झुकि करूँ नमन । जाग उठे कोरक नलिनी के मधुकर के फेरों में । तुम से जागृत लोकपाल हे ! हिय श्वसन घेरों में । त्रेता सी कलयुगी धारणा, ले आये कमल नयन । हे! अनुरागी श्री राम पिया,मैं झुकि-झुकि करूँ नमन । लोल कपोलों की छवि मोहक, सजल नयन ये नीरज। अंग अनंग विभोर करे मन थिर न सके मन धीरज । चित्रलिखित भे हीरे माणिक, कटितट निरखे करधन । हे! अनुरागी श्री राम पिया,मैं झुकि-झुकि करूँ नमन। अवध पुरी का आँगन हर्षित, झूम उठे गलियारे । शोभित चहुँदिक देव भूमि यह, झूमर बंदनवारे ।…
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“राम-राम कह अलख जगा लें,”
#गीत भाल लगाए रोली चंदन, दर्शन कर श्री धाम। राम-राम कह अलख जगा लें,बनते बिगडे़ काम। राम चरित की पावन गाथा, हमसब का आदर्श, हरि अनंत की कथा सनातन,जीवन का प्रतिदर्श । हिय कटुता की भेंट चढ़े मत,व्यर्थ सभी आलाप, राम सरिस आदर्श पुत्र को,शत-शत करूँ प्रणाम। राम-राम कह अलख जगा लें, बनते बिगडे़ काम। अनुपम शोभा दाशरथी की,कोमल कांति सु चित्त, कर्म भूमि हित सधी प्रत्यंचा,अनुपम जीवन वृत्त । राम-राम मुख आ न सके जो, नहीं कटे संताप, बढ़ते दुसह्य संताप कठिन, उनको दें विश्राम । राम-राम कह अलख जगा लें, बनते बिगडे़ काम। रचते हैं श्रीराम जहाँ पर, स्वयमेव अनुभाव, नारी का सम्मान लिए नित,बढ़ती जाए नाव। राम…
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“मावस भरे अँजोर”
#गीत? भाव भरे करसंपुट दीपक, दीप्त करे चहुँओर । रिद्धि सिद्धि से सोहे अँजुरी,मावस भरे अँजोर । थाल सजाकर फूल नारियल, सुरभित कर परिवेश। पूजा करती अँगना अँगना, लक्ष्मी सह प्रथमेश । हाथ जोड़ सब शीष नवाते,ज्योति जले प्रतिछोर । रिद्धि सिद्धि से सोहे अँजुरी,मावस भरे अँजोर । दान भोग औ नाश यही हो, सत्य सही संकल्प । सार्थक हो निज धर्म-कर्म से, क्षुधित न कोई अल्प। राम राज की पुनः कल्पना, लाए प्रतिपल भोर । रिद्धि सिद्धि से सोहे अँजुरी,मावस भरे अँजोर । लता प्रेम की शाख-शाख पर, बढ़ती जाये मीत। वर्ष वर्ष पर दीप दिवाली, झिलमिल गाये गीत । लड़ियों औ फुलझड़ियों से चहुँ,धूम मचे प्रिय शोर ।…
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ध्रुवक साधना
#गीत (छंद सरसी) धवल चँद्रिका शरद चंद्र की,अनुपम रूप मयंक। अंबर का शृंगार तुम्ही से, श्वेत स्वच्छ अकलंक । रंग भरे सपनों की कलशी, सजी तारिका नेक । ध्रुवक¹ साधना छंद सृजन के , भाव भरे अतिरेक । दर्शन दुर्लभ तीज-चौथ के,साधक उत्कट बंक² । अंबर का शृंगार तुम्ही से,श्वेत स्वच्छ अकलंक । झरे बूँद रिमझिम तुषार के, सुखदा कांति विशेष, अमिय कमंडल लेकर आये, तृषा मिटी अनिमेष । शुभ्र वेश उन्मेष सजाये, चातक लगे सशंक । अंबर का शृंगार तुम्ही से,श्वेत स्वच्छ अकलंक । साज सरस से छेड़ रागिनी, रीझे शारद विज्ञ, जगा रही ज्यों अलख ज्योत्सना, अनुरागी अनभिज्ञ । वश में अपने कर लेती जो, राजा हो या…