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चमके भानु प्रताप……
#गीत (आधार छंद सरसी) प्रात सजाए पूजा थाली,धूप दीप से जाप । अक्षत दुर्वा कुंकुम माथे,चमके भानु प्रताप। सरजू तट के रहवासी जो,अवध पुरी के नाम । राम बसे प्रति हृदय जहाँ पर,वृहद साधना धाम । मर्यादा पाथेय मिला जो, भाव भरे निष्काम । करतल करते बरगद पीपल,हरते मन संताप, अक्षत दुर्वा कुंकुम माथे,चमके भानु प्रताप। —————- रूप कंचनी आभा फैले, प्राची का शृंगार । सार जगत में प्रेम यहाँ पर,भर दे मन उद्गार । साँझ सुहानी लगती प्यारी,प्रिया खड़ी ज्यों द्वार। अधरों पर नित भाव व्यंजना,लगे सुखद आलाप, अक्षत दुर्वा कुंकुम माथे,चमके भानु प्रताप। ——————– मन वाणी सत्कर्म नीतियाँ,मिलती जहाँ सुयोग। वचनबद्धता रही यथावत ,युग-युग गायें लोग । मान…
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“नेह की लेकर छुअन”
#गीत वेदना संवेदना से क्षार हो जाए । दो नयन के धार से उपचार हो जाए । देह बाती की जली है नेह की लेकर छुअन । आ गया सावन सुहाए,प्यार की मीठी चुभन। पाँव सँभले हैं नहीं झंकार हो जाए । दो नयन के धार से उपचार हो जाए । सेज काँटों की बिछी पर दूब दुलराए उठन । बूँद रिमझिम गा रही घन शाख पर गाए सुगन। गूँज अनहद सावनी बौछार हो जाए । दो नयन के धार से उपचार हो जाए । पीर मन की बाँट कर बढ़ते रहेंगे हत थकन । आग पानी का समन्वय हो सकेगा ये जतन । तप्त पछुआ की हनक लाचार हो…
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हिन्दी हिन्दुस्तान की ।
हिन्दी हिन्दुस्तान की । #गीत कण-कण में भर दे नव स्पंदन,हिन्दी हिन्दुस्तान की । धूप-दीप नैवेद्य धूम सम, महिमा गुरु के ज्ञान की । ज्ञान मान से काटे जड़ता, मिटती है कटु वेदना । ज्ञान सुमन प्रतिभा का संचय, सजग सृष्टि संचेतना । वरद हस्त हों! ज्ञान दायिनी,बरसे नित वरदान की । कण-कण में भर दे नव स्पंदन,हिन्दी हिन्दुस्तान की । मलय वात सी चहुँ दिक डोले, सहज गामिनी हिन्दी भाषा । सुत अभिशापित होंगे जिनकी, बनी नहीं मन की अभिलाषा । दासत्व सुहाता उन्हें सदा ही,भाषा पर उपधान की । कण-कण में भर दे नव स्पंदन,हिन्दी हिन्दुस्तान की । अचल गिरा ये बोध हमें हो, कंठ सुधा ये हिन्दी…
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“मुरली मदन मुरारी”
“श्रीकृष्ण जन्माष्टमी” पर विशेष ——— #गीत कृष्ण-कृष्ण मय हुई धरा,भादौं की अँधियारी । प्रकट हुए थे नटवर नागर,मन मोहन गिरिधारी । दिवस अष्टमी कारागृह में, जन्में देवकि नन्दन । यशुदा आँगन बजी बधाई, गोकुल से वृंदावन । गोप-सखा हिय नंद दुलारे,प्रिय वृषभानु दुलारी । प्रकट हुए थे नटवर नागर,मन मोहन गिरिधारी । ग्वाल सखा सह धेनु चराए चीर चुराए ग्वालन । तट यमुना वंशी वट पनघट, हरषे मुकुलित मधुबन । मटकी फोड़ी माखन चोरी, ऐसे थे बनवारी । प्रकट हुए थे नटवर नागर,मन मोहन गिरिधारी । कंस त्रास से रक्षा करने, करने अरि का मर्दन । त्राहि त्राहि चहुँ ओर मची थी, धारे चक्र सुदर्शन । मधुर बाँसुरी जग भरमाए,मुरली…
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“श्याम प्रीत उपवेद”
#गीत विरह दिया क्यों पीड़ा जाँचें, चितवन आतुर भेद । अनगढ़ बातें लिखकर भेजूँ, श्याम प्रीत उपवेद । घने बादलों संग तुम्हारे, चलना पिय के गाँव । बूँदों में ढल जाऊँ प्रियवर, वंशीवट की छाँव । दीन करे पिय याद तुम्हारी,हठ करते मन खेद। ————————–श्याम प्रीत उपवेद । कोटिक तामस क्रंदन करते, भ्रमर वृंद के खेप । अंग लसे पिय नील नलिन के, श्याम वर्ण के लेप । चीर चुराकर यमुना तट पर,स्नान करे उच्छेद ————————–श्याम प्रीत उपवेद । व्याधि जगत की अलग सताए, नहीं सहज ये रोग । उबरे माधव जोगन काया माखन मिश्री भोग । “लता” विटप पर गीत अधर पर, निश्छल हो निर्वेद ————————–श्याम प्रीत उपवेद ।…
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“तोय तुमुल तट तटिनी से”
माह सावन को समर्पित । #गीत आया सावन मनभावन , पात-पात हरषे मुकुलित। नयन सुभग आतुर चितवन,प्रीत भरी कलिका अन्वित । आस जगी पग नूपुर की , ठुमक उठी मन की डाली । दे संदेशा विरहन को, ज्यों तीन ताल भूपाली । सुर लिए कहरवा टिप-टिप,नृत्य करे बरखा पुलकित । आया सावन मनभावन , पात पात हरषे मुकुलित । पहन धरा चूनर धानी ग्राम्य वधू सरसी हरषीं । भरी कलाई खनक उठी, कर हरी चूड़ियाँ हुलसीं । तोय तुमुल तट तटिनी से ,उफन-उफन होतीं गर्वित । आया सावन मनभावन , पात-पात हरषे मुकुलित । #लता सुहाए मास-दिवस, झूले सखियाँ तरु छैंया । शिव आराधन पर्व सहित, चले मिलन को पुरवैया…
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“बेल पत्र के त्रिगुण भाव से “
#गीत शिवत्व महिमा लेकर आया, सावन पहने चोला । संतों की आहुति से दिशि-दिशि,पूज्य हुए शिवभोला । महकी समिधा भीनी-भीनी, मंत्रों से मनभावन । आक पुष्प से शंभु सुहाए, गौरी के प्रिय पावन । दूध-पूत से धरा नहाई, खुशियों से मन डोला । शिवत्व महिमा लेकर आया,सावन पहने चोला । पंचगव्य से आँगन-आँगन, गमक उठे तन चंदन । कुमकुम बेंदी माथ सुहाए, सजनी करती वंदन । अनहद गूँजे गीत सावनी, झाँझर बाजे टोला । शिवत्व महिमा लेकर आया,सावन पहने चोला । लता-प्रेम की ढुरि-ढुरि गाए, मृदु जीवन संसारी । “बेल पत्र के त्रिगुण भाव से, प्रिय! भोले भंडारी। कजली,तीजा पर्व सावनी, साजे लगन तमोला । शिवत्व महिमा लेकर आया,सावन पहने…
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“गुरु बिन कौन सँवारे”
#गीत जल में थल में धरा गगन में,गुरु बिन कौन सँवारे । मंत्र मुदित मनभावन मंगल, सबको ईश उबारे । मरकत मणिमय निहित सरोवर, किरण प्रभा छवि गुंफित । सुखद सलोनी आभा अविरल, पात-पात पर टंकित। निखर उठा है पंकिल तन ये,मुकुलित नैन निहारे । जल में थल में धरा गगन में,गुरु बिन कौन सँवारे । मीन उलझती रही निरापद, शैवालों में खेले । सरसिज काया मदमाती यों, अगणित बाधा झेले। सतह-सतह पर कुटिल मछेरे,बगुले हिय के कारे । जल में थल में धरा गगन में,गुरु बिन कौन सँवारे । लता सीख देती ये कणिका, मन को करें न दूषित। धर्म नीति भावों की सरिता, निश्चित होगी भूषित । नया…
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धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया –
गीत —– —- धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया । मदन बाण तरकश लेकर संँवरिया —- चंचल बयरिया सजन मन भावै। सुध-बुध छीनै ये जिया तड़पावै । अँगना में बोलै सुगन हरजाई । छल-छल छलके है काँधे गगरिया, धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया ——-। सतरंगी आभा किरण बगरा के । इंद्र-धनुष जो तना गहरा के । कटि बलखावे बावरो पग नूपुर, चैन कहाँ पावै अनहद गुजरिया । धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया ——–। दर्पण देखत शृंगार मनभाए । रंग पिया मोहे चटक हुलसाए । लौंग सुपारी के वीड़ा अधर ज्यों, यौवन की आई खड़ी दुपहरिया धूप छाँव है कहुँ घेरे बदरिया —–। ———-डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी
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“पावस झरे”
#गीत बरखा सावन भाये प्रियतम साँसों को महका रही । लगा डिठौना कारी बदरी पग घूँघर ठुमका रही । #गीत बढ़ी तृषा हिय हुलसित गाए, होनी हो अनहद भले । करें दिग्भ्रमित घाट-पाट ये, अनहोनी हर बार टले । मौसम की मनुहार करे मन कँगना जो खनका रही । जादू टोना काम न आये , मन मयूर छन-छन करे , शाख-शाख पर कूक सुहाए रिमझिम जब पावस झरे । नृत्य सुखद यह भाव-भंगिमा , सजनी कटि मटका रही ——— डॉ प्रेमलता त्रिपाठी