शहीदों को नमन
छंद – आल्ह [ गीतिका ]
मात्रा = 31,16,15पर यति
समांत – आल – अपदांत
शहीदों को नमन
शांत नहीं अब शोणित होगा,संग हमारे होगा काल ।
छलनी करना सीना अरि का,ध्वस्त मनोबल हो हर हाल ।
शब्द शब्द कवि चंद सरीखे,जोश होश है लेना खींच,
शत्रु विनाश संकल्प हमारा,अरि का करना क्रिया कपाल ।
आत्मघात का खेल खेलते,छीन रहे रातों की नींद,
नींद न अरि को लेने देंगे,जाग चुके हैं अपने लाल ।
भूल नहीं सकता है अपना,देश सपूतों के बलिदान,
शरण सपोलों को देते जो,नहीं बनेंगे उनकी ढाल ।
व्यर्थ न जाने देंगे हम सब,कमर तोड़ना होगा पाक,
क्षम्य नहीं अपराधी हैं जो,शर्मनाक यह उनकी चाल ।
माँ बहनों से कहना है यह,आँखों के आँसू लो पोंछ,
नहीं बुझा है दीप तुम्हारा,जला गये हर हृदय मशाल ।
अधरों को दे गये हमारे,प्यारा सुंदर है जय घोष,
हृदय तरंगित हाथ तिरंगा,नहीं झुकेगा अपना भाल ।
रक्त रक्त है उबल रहा अब,फूट पड़ा मन का आक्रोश,
लिपट तिरंगे में तुमने जो,उठा दिया अतिरेक सवाल ।
घाव हृदय का सदा जगाकर,लेना होगा हमें जवाब,
आँसू की हर बूँद हथेली,प्रेम धरेगी सदा सँभाल ।
डॉ.प्रेमलता त्रिपाडी